Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 497
________________ २६१४ भगवती सूत्र-स. १७ 3 २ रुपी, अन्नपी नहीं बनता - सर्वज साक्षी करके रहने में समर्थ है ? १० उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि महद्धिक देव यावत् समर्थ नहीं है ? उत्तर-हे गौतम ! मैं यह जानता हूँ, मैं यह देखता हूँ, मैं यह निश्चित जानता हूँ, में यह सर्वथा जानता हूँ। मैंने यह जाना है, मैंने यह देखा है, मैंने यह निश्चित् जाना है और मैंने यह सर्वथा जाना है कि तथाप्रकार के रूप वाले, कर्म वाले, राग वाले, वेद वाले मोह वाले, लेश्या वाले, शरीर वाले और उस शरीर से अविमुक्त जीव के विषय में ऐसा ही ज्ञात होता है । यथा-उस शरीर युक्त जीव में कालापन यावत् श्वेतपन, सुगंधिपन या दुर्गन्धिपन, कटुपन यावत् मधुरपन तथा कर्कशपन अथवा यावत् रूझपन होता है । इस कारण हे गौतम ! वह देव पूर्वोक्त प्रकार से विक्रिया करने में समर्थ नहीं है । ११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वही जीव, पहले अरूपी होकर बाद में रूपी आकार की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? ११ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं यावत् विकुर्वणा करने में समर्थ नहीं है । हे गौतम ! मैं यह जानता हूं कि तथाप्रकार के अरूपी, अकर्मो, अरागी, अवेदी, अमोही, अलेश्यी, अशरीरी और उस शरीर से विप्रमुक्त जीव के विषय में ऐसा ज्ञात नहीं होता कि जीव में कालापन यावत् रूक्षपन है। इस कारण हे गौतम ! वह देव पूर्वोक्त रूप से विकुर्वणा करने में समर्थ नहीं हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैयों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते है। विवेचन-कोई महद्धिक देव भी पहले रूपी (मूर्त) होकर फिर अरूपी (अमूर्त) नहीं हो सकता । सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् ने इसी प्रकार इस तत्त्व को देखा है । शरीर युक्त जीव में ही कर्म पुद्गलों के सम्बन्ध से रूपीत्व आदि का ज्ञान होता है । जीव अरूपी-वर्णादि रहित होकर फिर रूपी नहीं हो सकता । क्योंकि कर्म रहित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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