Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 491
________________ २६०८ भगवती सूत्र-श. १. उ. २ बाल, पण्डित और बालपण्डित एगपाणाए वि दंडे अणिक्खित्ते से णं 'एगंतवाले' त्ति वत्तव्वं सिया, से कहमेय भंते ! एवं ? ५ उत्तर-गोयमा ! जणं ते अण्णउत्थिया एवं आइक्खंति जाव वत्तव्यं सिया; जे ते एवं आहंमु मिच्छं ते एवं आहंमु । अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि जाव परूवेमि ‘एवं खलु समणा पंडिया, समणोवासगा वालपंडिया, जस्स णं एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते से णं णो 'एगंतवाले' त्ति वत्तव्वं सिया। . ६ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं वाला, पंडिया, बालपंडिया ? ६ उत्तर-गोयमा ! वाला विं, पंडिया वि, वालपंडिया वि । ७ प्रश्न-णेरड्याणं-पुच्छा। ७ उत्तर-गोयमा ! णेरड्या वाला, णो पंडिया, णो बालपंडिया । एवं जाव चउरिदियाणं । ८ प्रश्न-पंचिंदियतिरिक्ख० पुच्छा । ८ उत्तर-गोयमा ! पंचिंदिय-तिरिक्व जोणिया बाला, णो पंडिया, वालपंडिया वि। मणुस्सा जहा जीवा । वाणमंतर-जोड़सिय-वेमाणिया जहा णेरइया । कठिन शब्दार्थ-आहेसु-कहा है, णिक्खित्ते-निक्षिप्त-डाला। भावार्थ-५ हे भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपित करते हैं कि-'श्रमण, पण्डित कहलाते हैं और श्रमणोपासक बाल-पण्डित कहलाते हैं, परन्तु जिस मनुष्य के एक भी जीव का वध अनिक्षिप्त (खुला) है, वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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