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शतक १६ उद्देशक १
आघात से वायुकाय की उत्पत्ति
१ प्रश्न-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अत्थि ण भंते ! अहिंगरणिंसि वाउयाए वक्क
मइ ?
१ उत्तर-हंता अत्थि। प्रश्न-से भंते ! किं पुढे उद्दाइ, अपुढे उद्दाइ ? उत्तर-गोयमा ! पुढे उद्दाइ, णो अपुढे उद्दाइ । प्रश्न-से भंते ! किं ससरीरीणिक्खमइ, असरीरी णिक्खमइ ?
उत्तर-एवं जहा खंदए जाव से तेणटेणं णो असरीरी णिक्खमई'।
कठिन शब्दार्थ-वक्कमइ-उत्पन्न होता है, पुढे-स्पर्शित होकर, णिक्खमइनिकल कर जाता है।
भावार्थ-१ प्रश्न-उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा-"हे भगवन् ! क्या अधिकरणी (एरण) पर (हथोड़ा मारते समय) वायुकाय उत्पन्न होता है ?"
१ उत्तर-"हां गौतम ! होता है ।"
प्रश्न-हे भगवन् ! उस वायुकाय का किसी दूसरे पदार्थ के साथ स्पर्श होने पर वह मरता है या स्पर्श हुए बिना ही मरता है ?
उत्तर-'हे गौतम ! उसका दूसरे पदार्थ के साथ स्पर्श होने पर ही मरता है, स्पर्श हुए बिना नहीं मरता।"
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