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भगवती सूत्र-श. १३ उ. ४ पंचास्तिकायमय लोक
प्रदेशों तक कहना चाहिये। विशेष में जघन्य पद में दो और उत्कृष्ट पद में पांच का प्रक्षेप करना चाहिये । पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश, जघन्य पद में दस प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बाईस प्रदेशों से स्पष्ट होते हैं। पुद्गलास्तिकाय के पांच प्रदेश, जघन्य पद में बारह प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सत्ताईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। पुद्गलास्तिकाय के छह प्रदेश, जघन्य पद में चौदह
और उत्कृष्ट पद में बत्तीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं । पुद्गलास्तिकाय के सात प्रदेश, जघन्य पद में सोलह और उत्कृष्ट पद में सेंतीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। पुद्गलास्तिकाय के आठ प्रदेश, जघन्य पद में अठारह और उत्कृष्ट पद में बयालीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। पुद्गलास्तिकाय के नौ प्रदेश, जघन्य पद में बीस और उत्कृष्ट पद में सेंतालीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। पुद्गलास्तिकाय के दस प्रदेश, जघन्य पद में बाईस और उत्कृष्ट पद में बावन प्रदेशों से स्पष्ट होते हैं। आकाशास्तिकाय के लिए सभी स्थान पर उत्कृष्ट पद कहना चाहिये।
२६ प्रश्न-हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं।
२६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य पद में उन्हीं संख्याता प्रदेशों को दुगुना कर के दो रूप और अधिक करे और उत्कृष्ट पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पांच गणा करके उन में दो रूप और अधिक जोड़े, उतने प्रदेशों से वे स्पष्ट होते हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! वे अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! धर्मास्तिकाय के समान जान लेना चाहिए। प्रश्न-हे भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पांच गुणा करके उनमें दो रूप और जोड़े, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! वह जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! अनन्त प्रदेशों से स्पष्ट होते हैं।
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