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भगवती भूत्र-ज..:. लोक की आकृति
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* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति के
॥ तरसमसए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-सुपट्टिय-मृप्रतिष्ठक (गरावला-मिट्टी का सकारा) ।
भावार्थ-४७ प्रश्न-हे भगवन् ! इस लोक का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ?
४७ उत्तर-हे गौतम ! इस लोक का संस्थान सुप्रतिष्ठक के आकार का कहा गया है। यह लोक नीचे विस्तीर्ण है, इत्यादि वर्णन सातवें शतक के प्रथम उद्देशक के अनुसार यावत् 'संसार का अन्त करते हैं'-तक कहनाचाहिये।
___४८ प्रश्न-हे भगवन् ! अधोलोक, तिर्यग्लोक और ऊर्ध्वलोक में कौन किस. कम, अधिक यावत् विशेषाधिक है ?
४८ उत्तर-हे गौतम ! सब से थोड़ा (छोटा) तिर्यगलोक है, उससे ऊर्ध्वलोक असंख्यात गुण है और उससे अधोलोक विशेषाधिक है।
हे भगवन् ! यह इमी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं।
विवेचन-नीच एक उल्टा (आधा) शरावला (मकोरा ) रखा जाय, उसके ऊपर एक सीधा और उसके ऊपर एक उल्टा गरावला रखा जाय । इसका जो आकार बनता है, यह लोक का आकार है। इस प्रकार नीचे से लोक चौड़ा है, मध्य में संकीर्ण हो जाता है, कुछ ऊपर फिर चौड़ा हो जाता है और सब से ऊपर फिर संकीर्ण हो जाता है । यहाँ लोक की चौड़ाई एक राज रह जाती है । इसका विस्तृत विवेचन मातवें शतक के प्रथम उद्देशक में किया गया है।
, तिर्यग्लोक अठारह सौ योजन का लम्बा है। इसलिये वह सब से छोटा है। ऊर्ध्वलोक की अवगाहना कुछ कम सात रज्जु परिमाण है, इसलिये वह तिर्यग्लोक से असंख्यात गुण है । अधोलोक की अवगाहना कुछ अधिक सात रज्जु परिमाण है, इसलिये वह ऊर्ध्व लोक से विशेषाधिक है।
॥ तेरहवें शतक का चौथा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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