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शतक १३ उद्देशक
सान्तर-निरन्तर उपपात-च्यवन
१ प्रश्न-रायगिह जाव-एवं वयासी-संतरं भंते ! णेरड्या उववजंति, णिरंतरं णेरड्या उववज्जति ?
१ उत्तर-गोयमा ! संतरं पि णेरइया उववज्जति, णिरंतरं पि णेरड्या उववज्जति । एवं असुरकुमारा वि, एवं जहा गंगेये तहेव दो दंडगा जाव-संतरं पि वेमाणिया चयंति, णिरंतरं पि वेमाणिया चयंति'।
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! नैरयिक मान्तर (समयादि के अन्तर सहित) उत्पन्न होते हैं था निरन्तर (समयादि के अन्तर रहित) ?
१ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । असुरकुमारों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिये । नौवें शतक के बत्तीसवें गांगेय उद्देशक के उत्पाद और उद्वर्तना के सम्बन्ध में दो दण्डक कहे हैं उसके समान यहाँ पर भी कहना चाहिए, यावत् 'वैमानिक सान्तर भी च्यवते हैं और निरन्तर भी च्यवते हैं'-तक कहना चाहिए।
चमरेन्द्र का आवास-स्थान
२ प्रश्न-कहि णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो चमरचंचा णामं आवासे पण्णत्त ?
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