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भगवती सूत्र-ग. १३ उ. ४ गंवास्तिकामग लोक
होता है और अलोक की अपेक्षा स्पृष्ट नहीं होता । यदि स्पष्ट होता है, तो जघन्य पद में लोकान्त में वर्तमान धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से, अलोकाकाश के अग्रभाग में रहा हुआ एक आकाश-प्रदेश स्पृष्ट होता है । वक्रगत आकाश-प्रदेश, धर्मास्तिकाय के दो प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । जिस अलोकाकारा के एक प्रदेश के आगे, नीचे और ऊपर धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, वह धर्मास्तिकाय के तीन प्रदेशों में स्पष्ट होता है । लोकान्त के कोने में रहा हुआ एक आकाश-प्रदेश, नदाश्रित धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से तथा ऊपर या नीचे रहे हए एक प्रदेश से और दो दिशाओं में रहे हए दो प्रदेशों से, इस प्रकार धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । जो आकाश-प्रदेश, धर्मास्तिकाय के ऊपर के एक प्रदय से. नीचे के एक प्रदेश से, दो दिशाओं के दो प्रदेशों से और वहीं रहे हुए धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है, वह इस प्रकार पाँच प्रदेशों से स्पष्ट होता है । जो आकागप्रदेश, धर्मास्तिकाय के ऊपर के एक प्रदेश से, नीचे के एक प्रदेश से, तीन दिशाओं के तीन प्रदेशों से और वहीं रहे हुए एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है, वह छह प्रदेगों से स्पृष्ट होता है। जो आकाश-प्रदेश, धर्मास्तिकाय के ऊपर के एक प्रदेश से, नीचे के एक प्रदेश से, चार दिशाओं के चार प्रदेशों से और वहीं रहे हुए एक प्रदेश से स्पष्ट होता है, वह सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पर्शना जाननी चाहिये ।
लोकाकाश अथवा अलोकाकाश का एक प्रदेश, छह दिशाओं में रहे हुए आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता है, इसलिये उसकी स्पर्शना छह प्रदेशों से कही गई है।
यदि लोकाकाश-प्रदेश हो, तो वह जीवास्तिकाय से स्पृष्ट होता है और यदि अलोकाकाश का प्रदेश हो, तो वह स्पृष्ट नहीं होता । क्योंकि वहाँ जीव नहीं होते । यही बात पुद्गलास्तिकाय और अद्धा-ममय के विषय में भी समझनी चाहिये ।
यदि जीवास्तिकाय का एक प्रदेश, लोकान्त के कोण में होता है, तो धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से (नीचे या ऊपर के एक प्रदेश से, दो दिशाओं के दो प्रदेशों से और एक तदाश्रित प्रदेश से) स्पृष्ट होता है । क्योंकि वहाँ स्पर्शक प्रदेश सब से थोड़े होते हैं। जीवास्तिकाय का एक प्रदेश, एक आकाश-प्रदेशादि पर केवलि-समुद्घात के समय ही पाया जाता है । उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों मे स्पर्शना होती है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पर्शना जाननी चाहिये ।।
जीवास्तिकाय के प्रदेश की स्पर्गना के समान पुद्गलास्तिकाय के प्रदेश की स्पर्शना भी जाननी चाहिये।
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