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भगवती सु. ५३३. ● लोक
प्रश्न - hasएहिं जीवत्थिकाय० ? उत्तर- अनंतेहिं ।
प्रश्न - केवइएहिं पोग्गलत्थिकाय० ? उत्तर - अनंतेहिं ।
प्रश्न - केवइ एहिं अद्धासम एहिं ?
उत्तर - सिय पुढे, सिय णो पुट्टे, जाव अनंतेहिं ।
कठिन शब्दार्थ -- पक्खिवियत्वा -- प्रक्षेप करना चाहिए ।
भावार्थ - २४ प्रश्न - हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश, धर्पास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है ?
२४ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य पद में छह प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बारह प्रदेशों से स्पृष्ट है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पृष्ट होते हैं ।
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प्रश्न - हे भगवन् ! वह आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट है ? उत्तर - हे गौतम ! बारह प्रदेशों से स्पृष्ट है । शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए ।
२५ प्रश्न - हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ?
२५ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य पद में आह और उत्कृष्ट पद में सतरह प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पृष्ट होते हैं ।
प्रश्न - हे भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सतरह प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिये । इस प्रकार इस पाठ
द्वारा यावत् दस
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