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भगवती सूत्र-श. १३ उ. ४ नरकावासों के स्थावर जीव भी महाकर्मी
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परमाधामिकः देवों द्वारा निर्मित अग्नि के समान उष्ण अन्य वस्तुएँ हैं। उनका स्पर्श तजस्काय जैसा होता है । इसलिये उसे तेजस्काय स्पर्श कहा गया है । वास्तव में वहाँ माक्षात् ते जम्काय नहीं होती।
३ प्रणिधिद्वार-यहाँ 'प्रणिधि' का अर्थ है-अपेक्षा । प्रणिधिद्वार में मातों नरकों की लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई आदि की पारस्परिक अपेक्षाकृत न्यनाधिकता बतलाई गई है। रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई अन्य सभी नरको की अपेक्षा अधिक है। उसकी मोटाई एक लाग्ब अम्मी हजार योजन की है । दूसरी पश्विघों की मोटाई इससे कम है। लम्बाई-चौड़ाई की अपेक्षा रत्नप्रभा पृथ्वी, अन्य सभी पवियों मे लघ है, क्योकि उसकी लम्बाई-चौड़ाई केवल एक राजू परिमाण है । दूसरी सब पश्चियों को लम्बाई-चौड़ाई इससे अधिक है ।
नरकावासों के स्थावर जीव भी महाकर्मी
५ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभा पुढवीए णिरयपरिसामंतेसु जे पुढविक्काइया० ?
५ उत्तर-एवं जहा णेरइयउद्देसए जाव अहेसत्तमाए । - भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों के आसपास जो पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं, वे महाकर्म, महाक्रिया, महाआश्रव और महावेदना वाले है ?
५ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं, इत्यादि, जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के दूसरे नैरयिक उद्देशक के अनुसार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिये।
विवेचन-४ निरयान्त द्वार में यह बतलाया गया है कि सभी नरकों के आसपास पृथ्वीका यिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं । वे महाकर्म, महाक्रिया, महाश्रव और महावंदना वाले हैं । इनका विस्तृत वर्णन जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के दूसरे नैरयिक उद्देशे में है ।
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