________________
भगवती सूत्र-श. १३ उ. ४ दिगाओं का उद्गम और विस्तार
२१८७
एक प्रदेश के विस्तार वाली है । वह उत्तरोत्तर वृद्धि रहित है । लोक आश्रयी वह असंख्यात प्रदेश वाली है और अलोक की अपेक्षा अनन्त प्रदेश वाली है । लोक आश्रयी वह सादि सान्त है और अलोक की अपेक्षा वह सादि अनन्त है । वह टूटी हुई मोतियों की माला के आकार है।
___याम्या (दक्षिण) दिशा का स्वरूप ऐन्द्री (पूर्व) दिशा के समान जानना चाहिये। नैऋती का स्वरूप आग्नेयी के समान जानना चाहिये, इत्यादि । ऐन्द्री दिशा के वर्णन के समान चारों दिशाओं का और आग्नेयी दिशा के समान चारों विदिशाओं का स्वरूप जानना चाहिये।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! विमला (ऊर्ध्व) दिशा के आदि में क्या है, इत्यादि आग्नेयी के समान प्रश्न ।
१२ उत्तर-हे गौतम ! विमला दिशा के आदि में रुचक-प्रदेश हैं। वह रुचक-प्रदेशों से निकली है । उसके आदि में चार प्रदेश हैं। वह अन्त तक दो प्रदेशों के विस्तार वाली है। वह उत्तरोत्तर वृद्धि रहित है । लोक आश्रयी वह असंख्यात प्रदेश वाली है । इत्यादि सारा वर्णन आग्नेयी दिशा के समान कहना चाहिये । विशेषता यह है कि वह रुचकाकार है । इसी प्रकार तमा (अधो) दिशा का वर्णन भी जानना चाहिये।
विवेचन-दस दिशाओं के नाम तथा गुण-निष्पन्न नाम ऊपर बताये गये हैं । पूर्वदिशा का अधिष्ठाता देव ‘इन्द्र' है, इसलिये इसको 'ऐन्द्री' कहते हैं । इसी प्रकार अग्निकोण का स्वामी 'अग्नि' देवता है, इसलिये उसे 'आग्नेयी' कहते हैं । दक्षिण दिशा का अधिष्ठाता 'यम' है । नैऋत्य कोण का स्वामी 'नैऋति' है । पश्चिम दिशा का अधिष्ठाता 'वरुण' देव है । वायव्य कोण का अधिष्ठाता 'वायु' देव है। उत्तर दिशा का अधिष्ठाता 'सोम' देव है। ईशान कोण अधिष्ठाता 'ईशान' देव है । अपने-अपने अधिष्ठाता देवों के नाम से ही उन दिशाओं और विदिशाओं के नाम हैं । अतएव ये गुण-निष्पन्न नाम कहलाते हैं । ऊर्ध्व दिशा को 'विमला' कहते हैं। क्यों कि ऊपर अन्धकार नहीं है, इस से वह निर्मल है, अतएव वह 'विमला' कहलाती है। अधोदिशा 'तमा' कहलाती है । गाढ अन्धकार युक्त होने से वह रात्रि तुल्य है। इसका गुण-निष्पन्न नाम 'तमा' है । इन दसों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org