Book Title: Bhagavati Aradhana Author(s): Shivarya Acharya Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh SolapurPage 10
________________ प्रधान सम्पादकीय स्वयंभू जैसे प्रतिभाशाली विद्वान् हुए है उसका साहित्य सर्वथा नष्ट हो गया हो, इस बातपर सहसा विश्वास नहीं होता । प्राचीन भण्डारोंमें वह अवश्य ज्ञात अज्ञात रूपमें पड़ा होगा'। श्रीयुत प्रेमीजीके इस कथनको भुलाना नहीं चाहिये। अकेले भ० आ० पर ही अनेक टीकाएं लिखी गई हैं और वे विक्रमकी १३वीं शब्तादी तक वर्तमान थीं। उनकी खोज होना आवंश्यक है । अभीतक छोटे-छोटे स्थानोंके शास्त्र भण्डारोंकी छान वीन नहीं की गई है। ऐसे स्थानोंसे भी कभी कभी ग्रन्थरत्नोंकी प्राप्ति हो जाती है । एकवार सब शास्त्र भण्डारोंकी छानबीन होना आवश्यक है । स्थानीय शास्त्र स्वाध्याय प्रेमी इस ओर यदि ध्यान दें तो यह खोज सरलतासे हो सकती है। प्राचीन शास्त्रोंकी पाण्डुलिपियोंकी सुरक्षाका प्रबन्ध होना चाहिये । कैलाशचन्द्र शास्त्री ग्रन्थमाला सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 1020