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मुनितोषणी टीका, प्रतिक्रमणाध्ययनम्-४
२३७ मम् (१०), मातृस्थानशब्देनात्र कपट (माया) गृह्यते । शय्यातरपिण्डसेवनमेकादशम् (११), ज्ञात्वा प्राणातिपातकरणं द्वादशम् (१२), ज्ञात्वा मृषावादकरणं त्रयोदशम् (१३), ज्ञात्वाऽदत्ताऽऽदानं चतुर्दशम् (१४), ज्ञात्वा सचित्तपृथिव्युपवेशनादि पञ्चदशम् (१५) स्निग्धपृथिव्यामुपवेशनं षोडशम् (१६), सजीवपीठफलकादिसेवनं सप्तदशम् (१७), मूल-कन्द-स्कन्ध-त्वक्-प्रवालपत्र-पुष्प-फल-बीज-हरितादीनां सेवनमष्टादशम् (१८), संवत्सराभ्यन्तरे दशोदकले पसेवनमेकोनविंशतितमम् (१९) संवत्सराभ्यन्तरे दशमातृम्थानसेवनं विंशतितमम् (२०), सचित्तोदकरजोव्याप्तहस्तादिना दत्तस्याऽऽहारादेः सेवनमेकविंशतितमम् (२१) ॥ सू० १४ ॥
आदि से उतरना), (१०) एक महीने में तीन मातृस्थान (कपट) सेवन करना, (११) शय्यातर पिण्ड का सेवन करना, (१२) जानबूझ कर प्राणातिपात करना, (१३) जानबूझ कर झूठ बोलना, (१४) जानबूझ कर चोरी करना, (१५) जानबूझ कर सचित्त पृथ्वी पर बैठना, (१६) स्निग्ध (गीली) पृथ्वी पर बैठना, (१७) जीव सहित पीठ फलक आदि का सेवन करना, (१८) मूल-कन्दस्कन्ध-स्वक-प्रवाल-पत्र-पुष्प-फल-बीज और हरित, इन दश प्रकार की सचित्त वनस्पति आदि का सेवन करना, (१०) एक वर्ष में दश उदक लेप लगाना, (२०) एक वर्ष में दश मातृस्थान सेवन करना, (२१) सचित्त उदक से भीगे हुए (गीले) हस्तपात्र
ત્રણ વાર પાણીને લેપ લગાડવો (નદી વિગેરે ઉતરવાં), (૧૦) એક માસમાં ३ भातृस्थान (४५८नु) सेवन ४२j, (११) शय्यातरपिंड सेवन ४२j, (१२) Me-मुडीन प्रातिपा1 ४२५ो, (13) सी-समथने असत्य मास, (१४)
-समटने यारी ४२वी, (१५) onel-मुलीने २.यित्त पृथ्वी ५२ मेसयु, (૧૬) પાણીથી ભીંજાએલી જમીન પર બેસવું, (૧૭) જીવ સહિત પીઠફલક વગેરેનું सेवन ४२७, (१८) भूत, ६, २४०५, छास, प्रवास, पत्र, पु.५, ५०, ४ भने હરિત-લીલી આ દસ પ્રકારની સચિત્ત વનસ્પતિનું સેવન કરવું, (૧૯) એક વર્ષમાં દસ पाशीना ५ ॥31, (२०) मे वर्षमा ६स भातृस्थान (७५८) सेवन ४२५i, (२१) સચિત્ત પાણીથી ભીંજાએલા હાથ-પાત્ર આદિથી આપેલા આહાર-આદિનું સેવન