Book Title: Avashyak Sutram
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 377
________________ ३२८ आवश्यकसुत्रस्य न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि, मणसा वयसा कायसा, ऐसे अठारह पापस्थानक पच्चक्षके सव्व असण पाणं खाइमं साइमं चउन्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, ऐसे चारों आहार पच्चक्ख के जं पि य इमं सरीरं इटे, कंतं, पियं मणुण्णं, मणाम, घिजं, विसासियं संमयं, अणुमयं, बहुमयं, भण्डकरण्डसमाणं, रयणकरंडगभूयं, मा णं सीयं, मा णं उण्डं, मा णं खुहा, माणं पिवासा, माणं बाला, मा णं चोरा, मा णं दंसमसगा, माणं वाहियं, पित्तियं, कम्फियं, संभीमं सनिवाइयं विविहा रोगायंका परिसहा उबसग्गा फासा फुसंतु-एवं पि य णं चरमेहिं उस्सासनिस्सासेहि बोसिरामि त्ति कटु ऐसे शरीर वोसिरा के, कालं अणवकंखमाणे विहरामि, ऐसी मेरी सहहणा परूपणा तो है, फरसना करूं तो शुद्ध होऊ ऐसे अपच्छिम-मारणंतियसंलेहणा-झुसणा-अराहणाए पंच अइयारा जाणियबा, तं जहा-इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । तस्स धम्मस्स का पाठ । तस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स अब्भुटिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए तिविहेणं पडिक्कंतो वंदामि जिणचउन्नीसं ।

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