Book Title: Avashyak Sutram
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 375
________________ आवश्यक सूत्रस्य उवभोगपरिभोगाइरित्ते, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुकडं । नववां सामायिकव्रत- सव्वसावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावनियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा, वयसा, कायसा, ऐसी सद्दहणा परूपणा तो है सामायिक का अवसर आये सामायिक करूं तब फरसना करके शुद्ध होउँ, एवं नववें सामायिक व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा-ते आलोउं मणदुष्पणिहाणे, वयदुष्पणिहाणे, कायदुपणिहाणे, सामाहयस्स सह अकरणया सामाइयस्स अणवडियस्स करणया जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । ३२६ दसवां देसावगासिकव्रत-दिन प्रति प्रभात से प्रारंभ करके पूर्वादिक छहों दिशा की जितनी भूमिका की मर्यादा रक्खी हो उसके उपरान्त स्वेच्छा काया से आगे जाकर पांच आश्रव सेवने का पच्चऋग्वाण, जाव अहोरन्तं दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा, जितनी भूमिका की हद रक्खी उसमें जो द्रव्यादिक की मर्यादा की है उसके उपरान्त उपभोग- परिभोगनिमित्त से भोगने का परचक्रवाण जाव अहोरत्तं एगविह तिविहेणं न करेमि मणसा वयसा कायसा, एवं दशवें देसावगामिक व्रत के पंच अध्यारा जाणियन्वा न समायरियव्वा, तंजहा ते आलोडं आणवणप्पओगे, पेसवणप्पओगे, सद्दाणुवाए, रूवाणुवाए, बहियापुग्गलपक्खेवे, जो मे देवसिओ अध्यारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं । ग्यारहवां पडिपुन पोषधव्रत- असण पाण खाइमं साइमं का पच्चक्खाण, अबंभ सेवन का पच्चक्खाण, अमुक मणि सुवर्ण का पच्चत्रवाण, मालावन्नग - विलेवण का पच्चखाण, सत्यमुसलादिक सावज्जोग सेवन का पच्चक्खाण, जाव अहोरन्तं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेण न करेमि न कारवेमि, मणसा, वयसा कायसा ऐसी सद्दहणा परूपणा तो है पोसह का अवसर आये पोसह करूँ तब फरसना करके शुद्ध होउँ, एवं ग्यारवां पडिपुन्न पोषधव्रत का

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