Book Title: Avashyak Sutram
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 374
________________ बारह व्रतों का अतिचार सहित पाठ । ३२५ सातवां व्रत-उवभोगपरिभोगविहिं पचक्खायमाणे उल्लणियाविहि १, दंतणविहि २, फलविंहि ३, अभंगविहि ४, उवट्टणविहि, ५. मज्जणविहि ६, वत्थविहि ७, विलेवणविहि ८, पुप्फविहि ९, आभरणविहि १०, धूवविहि, ११, पेज्जविहि १२, भक्खणविहि १३, ओदणविहि १४, सूपविहि १५, विगयविहि १६, सागविहि महुरविहि १८, जीमणविहि १९, पाणीअविहि २०, मुखवासविहि २१, वाहणविहि २२, उवाणहविहि २३, सयणविहि २४, सचित्तविहि २५, व्वविहि २६, इत्यादि का यथापरिमाण किया है, इसके उपरान्त उवभोगपरिभोग वस्तु को भोगनिमित्त से भोगने का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए एगविहं तिविहेणं, न करेमि मणसा वयसा कायसा, एवं सातवां उवभोगपरिभोग दुविहे पन्नत्ते, तंजहाभोयणाओ य, कम्मओ य। भोयणाओ समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा-ते आलोउं सचित्ताहारे, सचित्तपडिबद्धाहारे, अप्पउलिओसहिभक्खणया, दुप्पउलिओसहिभक्स्वणया, तुच्छोसहिभक्खणया, कम्मओण समणोवासएणं पन्नरस कम्मादाणाइं जाणियव्वाइं न समायरियव्वाइं, तंजहा ते आलोउं इंगालकम्मे, वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे, फोडीकम्मे दंतवाणिज्जे, लक्खवाणिज्जे, केसवाणिज्जे, रसवाणिज्जे, विसवाणिज्जे, जंतपोलणकम्मे, निल्लंछणकम्मे, दवग्गिदावणया सरदहतलायसोसणया, असईजणपोसणया, जो मे देवसिओ अइयारो को तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । आठवां अणट्ठादण्डविरमणव्रत-चउन्विहे अणट्ठादंडे पण्णत्ते, तंजहा-अवज्झाणायरिए, पमायायरिए, हिंसप्पयाणे, पावकम्मोवएसे, एवं आठवां अणहादंड सेवन का पञ्चक्खाण (जिसमें आठ आगारआए वा, राए वा, नाए वा, परिवारे वा, देवे वा, नागे वा, जक्खे वा, भूए वा, एत्तिएहिं आगारेहिं अन्नत्थ) जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा, एवं आठवां अणट्ठदंड, विरमणव्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा-ते आलोउं कंदप्पे, कुक्कुइए, मोहरिए संजुत्ताहिगरणे,

Loading...

Page Navigation
1 ... 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405