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९ हिन्दीपरिशिष्ट
३२३-३२८
हिन्दी-परिशिष्ट ॥ बारह व्रतों के अतिचार सहित पाठ ॥ पहिला अणुव्रत-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं,त्रसजीव-बेइंदिय तेइंदिय चररिदिय पंचिदिय जानके पहिचानके सङ्कल्प करके उसमें स्वसम्बन्धी-शरीर के भीतर में पीडाकारी सापराधी को छोड निरपराधी को आकुट्टी की बुद्धि (हनने की बुद्धि) से हनने का पच्चक्वाण जावजीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा, ऐसे पहिले स्थूल प्राणातिपात-विरमण-व्रत के पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तंजहा-ते आलोउं बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणविच्छेए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
दूजा अणुव्रत-थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, कन्नालिए, गोवालिए, भोमालिए, णासावहारो (थापणमोसो) कूडसक्खिवज्जे ( कूडी साख, ) इत्यादिक मोटा झूठ बोलने का पञ्चक्खाण जावजीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा, कायसा, एवं दूजा स्थूल मृषावाद विरमणव्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा-ते आलोउं सहसब्भक्खाणे, रहम्सब्भग्वाणे, सदारमंतभेए, मोसोवएसे, कूडलेहकरणे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
तीजा अणुव्रत-थूलाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, खात खनकर, गांठ खोलकर, ताले पर कुंजी लगाकर, मार्ग में चलते को लूट कर, पडी हुई धणियाती मोटी वस्तु जानकर लेना इत्यादि मोटा अदत्तादान का पञ्चकवाण, सगे-सम्बन्धी, व्यापार-संबंधी तथा पडी निभ्रमी वस्तु के उपरान्त अदत्तादान का पच्चक्खाण जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा, एवं तीजा स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा-ते आलोउं तेनाहडे तकरप्पओगे, विरुद्धरनाइक्कमे, कूडतुल्ले, कूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
१ 'स्वदारसन्तोष' ऐसा पुरुष को बोलना चाहिये, और स्त्री को स्वपतिसन्तोष ऐमा बोलना चाहिये ।