Book Title: Avashyak Sutram
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 331
________________ २८२ आवश्यकसूत्रस्व जाता दश । एवं मुक्ति (निलो भता) पदेन (१०), आर्नवेन (१०), मार्दवेन (१०), लाघवेन (१०), सत्येन (१०), संयमेन (१०), तपसा (१०), त्यागेन (१०), ब्रह्मचर्येण च (१०); जाताः सर्वे श्रोत्रेन्द्रियपदेन शतमेकम् (१००)। एवं चक्षुषा (१००), घ्राणेन (१००), रसनया (१००), स्पर्थेन च (१००), जाताः सर्वे आहारसज्ञापदेन शतानि पश्च (५००)। एवं भयसज्ञापदेन (५००), मैथुनसज्ञापदेन (५००), परिग्रहसज्ञापदेन च (५००)। जाताः सर्वे 'न करोति' पदेन सहस्रद्वयम् (२०००), ए 'न कारयति' पदेन(२०००), 'नानुजानाति' पदेन (२०००), जाताः सर्वेः 'मनसा' पदेन षट् सहस्राणि (६०००)। एवं वचसा (६०००), कायेन च (६०००); जाताः सर्वेऽष्टादश सहस्राणि शीलाङ्गानि, तानि धरन्ते इत्यष्टादशशीलासहस्रधारा इति । उनं च जोए' करणे सण्णा, इंदिय भोम्माइ समणधम्मे य । अण्णोण्णेहि अब्भत्था, अट्ठारह सीलसहस्साइं ॥१॥ ' छाया-योगाः करणानि संज्ञा इन्द्रियाणि भूम्यादयः श्रमणधर्माश्च । अन्योन्यैरभ्यस्ता अष्टादशशीलसहस्राणि ॥१॥ अठारह हजार शीलाङ्गरथ ये हैं-१-पृथ्वीकाय आरम्भ, २अप्काय आरम्भ, ३-तेजस्काय आरम्भ, ४-वायुकाय आरम्भ, ५-वनम्पतिकाय आरम्भ, ६-बेन्द्रिय आरम्भ, ७-तेन्द्रिय आरम्भ, ८-चतुरिन्द्रिय आरम्भ, ९-पंचेन्द्रिय आरम्भ, १०-अजीव आरम्भ, ये १० भेद क्षान्ति के हुए, इसी प्रकार मुक्ति के (१०), आर्जव के (१०), मार्दव के (१०), लाघव के (१०), सत्य के (१०), संयम के (१०), तप के (१०), त्याग के (१०), ब्रह्मचर्य के (१०), ये सब श्रोत्रेन्द्रिय के १०० भेद हुए, इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय के १००, घ्राणेन्द्रिय के १००, रसेन्द्रिय के १००, स्पर्शेन्द्रिय के १००, ये सष आहार संज्ञा के ५०० - भेद हुए, इसी प्रकार भयसंज्ञा के ५००, मैथुनसंज्ञा के ५००, और परिग्रहसंज्ञा के ५०० हुए, इस प्रकार सब २००० भेद हुए, इन्हें न करने, न कराने और न अनुमोदन करने के द्वारा तिगुना करने पर ६००० भेद हुए, इन्हें फिर मन, वचन, काया से तिगुना करने पर १८००० होते हैं।

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