Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 5
________________ खडे रहनेको या बैठनेको पटडे (पाटला) ६४ । ३४ चीजवस्तु रखनेके लिए छोटे परंतु लंबे पटडे ( पाट ) १५ । ३५ मिश्री (साकर) सवासेर । ३६ पतासे २॥ सेर । ३७ पेडे २॥ सेर नंग ९६।३८ लडु ९६ । ३९ पूरी ९६ । ४० खाजां (खजले)९६। ४१ इक्षु (गन्ने-शेलडी) के टुकडे ९६ । ४२ मुशक काफूर ( कपूर ) तोला ५ । ४३ अष्टापद पर्वतके रंगने के लिये पांच जातिके रंग । अष्टापद पर्वतकी रचना. अहमदाबाद आदि कई शहरों में अष्टापदकी रचना बनी बनाई होती है परंतु जहां न होवे और महोत्सवकरने की इच्छा हो तो प्रथम शुद्ध म्होटी विशाल भूमिके मध्य भाग में १॥ गज प्रमाण गोल पर्वत का थडा बने इस रीति ईंट माटीका पर्वत चिनना । चिनते हुए तीन मेखला (त्रागडी) बनवानी। दक्षिणके पासे आठ पौडी (पथियां) रखनी। ऊंचा तीन चार गज और चौडा देढ दो गज चोरस रखना । जाति जाति के रंगसे पहाडको रंग बिरंग करना । ऊपर एक बडा चोरस-टूटीवाला (नालचुवाला) सिंहासन, बाजोठ (चोकी) के ऊपर रखना। सिंहासनके उपर पूर्व दिशामें दो जिन बिंब, दक्षिण में चार जिनबिंब, पश्चिममें आठ जिन बिंब और उत्तरमें दश जिनबिंब स्थापन करने । जिनबिंब छोटे म्हाटे होवे-परन्तु नासिका सबकी एक सरीखी बराबर आवे-इस रीति स्थापन करने । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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