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(केसरिया थासुं-यह चाल) जिन जन्म कल्याणक उत्सव करेरे शुन जावसे ॥ अंचली ॥ चैत्र वदि अष्टमी मंगलिक दिन मध्य रात्रि शुन वेला। जिन जन्मोत्सव कारण मेरु सुर सुरपति होय नेला रे ॥ जि॥१॥ पांच रूप करके सुरपति जिन एकरूप ग्रही हाथे। दोय रूप चामर करते हैं, एक बत्र धरे माथे रे ॥जि ॥२॥ वज्र उबालत चालत आगे एक रूप सुरवामी । मेरु पर जा गोदमें प्रजुको पधरावे सुख कामी रे ॥ जि० ॥३॥ साठ लाख एक कोटि कलशे स्नात्र करावे लावे । सहस चसट्ठी एक अनिषेके वार अढीसौ थावे रे ॥ जि ॥४॥ विधिसे जन्म महोत्सव करके, मात पास लेश
आवे। चिरंजीव आसीस देयके, छीप नंदीश्वर जावे रे ॥ जि० ॥५॥ क्रमसे नानि नरपति सुरपति, मिल प्रनु नाम ठरावे । ऋषनदेव प्रनु बातम लदमी, वन अति हर्षावरे ॥ जि॥६॥
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