Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 44
________________ (सोहनी-ढुंढ फिरा जगसारा.) अष्टापद सुखकारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अंचली ॥ पुण्यवंत यह तीरथ नेटी, सुख लेवे फुःख देवे मेटी। तीरथ तारन हारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ० ॥१॥ तीरथ अष्टापद नवितारण, चक्री सगरसुत वंदन कारण । आये साठ हजारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ॥२॥ दक्षिण दिशि संजव अभिनंदा, सुमतिनाथ पद्म प्रन चंदा । वंदन करे जिन चारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥अ॥३॥ पश्चिमदिशि सुपार्श्व जिनंदा, चंड प्रन श्री सुविधि मुनंदा । शीतल शीतलकारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ० ॥ ४ ॥ श्रेयांस वासुपूज्य जिनेसर, विमल अनंत जिन नाथ जुगेसर । वंदन जवजल पारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ॥५॥ उत्तरदिशि श्री धर्म सुहंकर, शांति कुंथु अरनाथ धुरंधर । श्रीमद्धिनाथ जुहारा सुखकारा नविजन कीजे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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