Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library
View full book text
________________
तीरथ कायम जानिये, पंचम आरा अंत । देवाधिष्ठित मानिये, श्म नाषे नगवंत ॥२॥ ___(धनाश्री-पूजन करोरे आनंदी.)
अष्टापद जयकार तीरथ जग अष्टापद जयकार ॥ अंचली ॥ पंदरसो तीन तापस कीना, पारणा चित्त उदार ॥ तीरथ जग अष्टा० १॥ दीराश्रव लब्धिसे गौतम, तृप्त किया अनगार॥ तीरथ जग अष्टा २॥ पांचसो एकने केवल पायो, पायस जिमतां सार॥तीरथ जग अष्टा०३॥ पांचसो एकने केवल लीनो, समवसरण निरधार ॥ तीरथ जग अष्टा ४ ॥ केवली पांचसो एक हुए हैं, वीर वचन अवधार॥तीरथ जग अष्टा०५॥ केवली प. रिसद जाय बिराजे, नमो तित्थस्स उच्चार ॥तीरथ जग अष्टा० ६॥ आतम लदमी प्रजुता साधी, वसन हर्ष अपार ॥ तीरथ जग अष्टा० ॥
कलश. ( मन मोह्या जंगलकी हरणीने. ) नविनंदो तीरथ जस वरणीने ॥ नविनंदो ॥अंचली॥ अष्टापद तीरथ जग उत्तम, जिनशा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54