Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library
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४५ मालकोश-त्रितालप्रजु वीरनाथ उपदेश सार, सुन जव्य जीव नव उतरे पार ॥प्रजु अंचली ॥ तीरथ अष्टापद अवदात, नूचर चरकर करत जात। होवे तदनव नवसे पार ॥ प्रज्जु वीरनाथ ॥ सुनकर गौतम गणधर धाये, निजलब्धि अष्टापद आये। वंदत जिनवर वीस चार ॥ प्रजु वीरनाथ ॥ चनअठ दस दोय जावे वंदन, निजगुण रंजन कर्म निकंदन । तीरथ अष्टापद जुहार ॥ प्रनु वीरनाथ०३॥ तापस पंदरसो तीन देखी, नूल गये सब अपनी शेखी। गौतम गुरु लिये दिलमें धार ॥ प्रन वीरनाथ०४॥ आतम लक्ष्मी गौतम स्वामी, तापस आतम लक्ष्मी पामी। हर्षे ववन प्रभु तीर्थकार ॥ प्रभु वीरनाथ० ५॥ .
दोहरा. जरतेश्वर के समयमें, अष्टापद हुई नाम । अष्टापद गिरि खाश्का, चक्री सगरसे काम ॥१॥
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