Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 46
________________ परी जब नाग निकाये, आये नाग यह कथन करंद ॥ ती० ॥ नागलोकके बाल बुद्धि वश, अपराधी हो सगर फरजंद । तुम अपराध तरफ जो देखें, बाली नस्म करें तुम खंद ॥ ती०३ ॥ ऋषन वंश के हो इस कारण, क्रोध नहीं हम मनमें धरंद । नागकुमार जवन रत्नोंके, रजरेणुसे होत मलंद ॥ त०४॥ माफ करो गुणवंता सऊन, हितशिदा हम ध्यान लहंद । नागकुमार गये यूं कहके, चक्री नंदन मन शोच करंद ॥ ती०५॥ जरिये खाइ गंगा जलसे, तीरथ स्थिर चिरकाल रहंद । दंग रत्नसे खोदके गंगा, ले आये गंगाजल वृंद॥ती०६॥ गंगाजल आया खाश्में, नागनिकायके नवनगिरंद। क्रोध करी आकर सुर साथे, साठहजारको दाह करंद॥ती॥तीरथ रक्षा जाव प्रनावे, स्वर्ग बारवें जा उपजंद।आतम लक्ष्मी जन्मांतरमें, वखन हर्षे सबही लहंद ॥ ती ॥ काव्यफल पूर्ण लेनेके लिये फल पूजना जिन की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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