Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat શ્રી યશોવિજયજી 4 જૈન ગ્રંથમાળ) દાદાસાહેબ, ભાવનગર. | 0 ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ ૩૦૦૪૮૪૬ www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2-21ो संपतविजयजी महाराजके उपदेशसें. अमरावतीवाले शेठ फतेचन्दजी मांगीलाल तरफसें भेट. || अहम् ॥ श्री हेमविजयजी फ्री लायब्रेरी ग्रंथमाला नं. १९ श्री अष्टापद तीर्थ पूजा. वापरायबरपरररर - -- योजकजैनाचार्य श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वर शिष्य मुनिमहाराज चन श्री लक्ष्मीविजयजी शिष्य मुनिराज श्री हर्षविजयजी शिष्य मुनिराजश्री वल्लभविजयजी. चरचराचराचराचEO च चचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचर चरचयवाचवायचच प्रकाशकश्री हंसविजयजी फ्रो लायब्रेरीना सेक्रेटरी, जेशंगभाइ छोटालाल सुतरीआ, लणसावाडा मोटी पोल, अहमदाबाद... -RSSEEEधी युनियन प्रीन्टींग प्रेस कंपनी लीमीटेडमां शा. मोहनलाल चीमनलाले छाप्यु-अमदावाद, चरचरचयापचयाचार वीर संवत् २४४९। प्रथमावृत्ति विक्रम संवत १९७९ आत्म संवत् २७२००० ईसवीसन १९२३ चचचचचचचचचचचचचचचचचचर लयलचल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री राजनगर (कीकानटनी पोळ मंगन)मोसला पार्श्वनाथ अने विमलजोन स्तवन ओधवजी संदेशो कहेज्यो शांमने-ए देशी.* श्री डोसला पार्श्वनाथ अने विमल प्रभु, कीकाभटनी पोळना देवल माही जो। हेठल ऊपर मूलनायक प्रभु पूजतां, पाप टले तत्काल पूजकनां तांही जो॥ श्री डो० ॥शा त्रण भूवनना मित्र प्रभु के मनोहरु, विमलनाथजी निर्मलता धरनार जो। ऊपशम रस वरसावा दीधी देशना, सांभली नरनारी ऊतयाँ भव पार जो ॥ श्री डो० ॥२॥ त्रण जगतना प्रकाशक के प्रभु पासजी, लोक तणी शुभ आशाना पुरनार जो । शिवनगरीमां निवास कर्यों छे स्वामीये, नाश करी भव पास तणो ते वार जो ॥ श्री डो० ॥३॥ शुक्ल ध्यान धरनार विमल जीन नाथनी, ऊज्वल मूर्ति शोभे अपरंपार जो। देव दानव धरे ध्यान ते निर्मळ चित्तशु, आतम निर्मळ करवा कारण सार जो॥ श्री डो०॥४॥ श्याम सुंदर शोमे मूर्ति प्रभु पासनी रत्न जडित मुगटथी अति मनोहार जो। मेघ घटा साथे शोभे जेम वीजळी, सेवक हंस तरे भव पारावार जो ॥ श्री डो० ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधि gorCare १ अष्ट प्रकारी पूजाका सामग्री । सामग्री २ चढता उतरती २४ तीर्थंकर जोनीस प्रतिमा। १ छत्र । २ चामर । ३ चोरस सिंहासन १ बडा । ४ सोलां स्नात्री सपत्निक (सजोडे )।५ स्नात्री ६४ पूजाके वास्ते । ६ कलश ६४।७ करेबियां ६४ (रकेबी)। ८ कटोरियां ६४ छोटी (वाटकी)।९ आरती ६४ । १० मंगलदीवा ६४११ लालटेनां छोटियां ६४ (फानस)।१२ श्रीफल ९६। १३ घंट १।१४ कटोरेबडे ७ ( वाडका)। १५ फूलोंके हार ६४ । १६ फूलोंके हार छोटे ३२ तथा छूटे फूल । १७ थाल महोटे ७ । १८ दूध पंचामृत बनानेके वास्ते । १९ परात (कथरोट )७। २० बालटी (त्रांबाकुंडी) ७ । २१ अखले ( आखलिया ) १० । (खुमचा मुकवानो घासनो) २२ नैवेद्य एक एक किसम (जात) का नंग (९६) छानवे छानवे २३ केले ९६ । २४ फल जुदी जुदी जातके ९६ । २५ सुपारी सवाशेर । २६ बादाम सवाशेर । २७ गीवासूत्र ( मौली-नाडु-नाडाछडी) पावसेर । २८ अगरबती तथा दशांग धूप आधसेर । २९ वासक्षेप । ३० कुंकुम (रौली) आधसेर । ३१ प्रभुको वधानेके लिये कुंकुमसे रंगे हुए चावल सेर ५ । ३२ विनारंगे सफेद चावल २॥ सेर । ३३ स्नात्रियों के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खडे रहनेको या बैठनेको पटडे (पाटला) ६४ । ३४ चीजवस्तु रखनेके लिए छोटे परंतु लंबे पटडे ( पाट ) १५ । ३५ मिश्री (साकर) सवासेर । ३६ पतासे २॥ सेर । ३७ पेडे २॥ सेर नंग ९६।३८ लडु ९६ । ३९ पूरी ९६ । ४० खाजां (खजले)९६। ४१ इक्षु (गन्ने-शेलडी) के टुकडे ९६ । ४२ मुशक काफूर ( कपूर ) तोला ५ । ४३ अष्टापद पर्वतके रंगने के लिये पांच जातिके रंग । अष्टापद पर्वतकी रचना. अहमदाबाद आदि कई शहरों में अष्टापदकी रचना बनी बनाई होती है परंतु जहां न होवे और महोत्सवकरने की इच्छा हो तो प्रथम शुद्ध म्होटी विशाल भूमिके मध्य भाग में १॥ गज प्रमाण गोल पर्वत का थडा बने इस रीति ईंट माटीका पर्वत चिनना । चिनते हुए तीन मेखला (त्रागडी) बनवानी। दक्षिणके पासे आठ पौडी (पथियां) रखनी। ऊंचा तीन चार गज और चौडा देढ दो गज चोरस रखना । जाति जाति के रंगसे पहाडको रंग बिरंग करना । ऊपर एक बडा चोरस-टूटीवाला (नालचुवाला) सिंहासन, बाजोठ (चोकी) के ऊपर रखना। सिंहासनके उपर पूर्व दिशामें दो जिन बिंब, दक्षिण में चार जिनबिंब, पश्चिममें आठ जिन बिंब और उत्तरमें दश जिनबिंब स्थापन करने । जिनबिंब छोटे म्हाटे होवे-परन्तु नासिका सबकी एक सरीखी बराबर आवे-इस रीति स्थापन करने । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजन स्थापन. सपत्निक ( सजोडे ) १६ स्नात्री तैयार होवे वह चारों तर्फ चार चार आम सामने पटडेपर बैठ जावें । वर्द्धमान विद्यासे मंत्रकर वास क्षेप तैयार रखना। ३२ करेबियोंमें जल कलश १ चंदन कटोरी (वाटकी) २ फूल तथा छोटे हार ३ धूप ४ दीप ( लालटेन-फानसमें ) ५ अक्षत (चावल ) ६ फल ७ और नैवेद्य ८ तथा आरती मंगल दीवा और काफूर (कपूर ) करेबियों में धर कर कतार बंध पंक्तिबंध सब करेबियां चारों दिशा में बैठे हुए चार चार सपत्निक ( सजोडे ) स्नात्रीके सनमुख पटडों पर रखदेनी । पहाडके नजीक अखला या बाजोठ (चोकी) के ऊपर थाल या बड़ी करेबी में एक एक जिन प्रतिमा चारों तर्फ स्थापन करनी। सामने सामग्री चढाने के वास्ते एक एक अखला या बाजोठ ( चोकी) रखदेनी। पूर्व दिशा पूजनस्थापन. __पूर्व दिशाके चारों सजोडोंको वास क्षेप करके पूर्व दिशा का पूजन स्थापन करना। ॐ ह्री श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पूर्वदिशासंस्थित ऋषभ अजित जिन बिंब अत्र अवतर संवौषट् स्वाहा ” [ आह्वान मुद्रासे आह्वान करना । " आओ पधारो " कहना । ] पुनः “ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यालये पूर्वदिशासंस्थित ऋषभ अजित जिन बिंब अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा ” [ स्थापन मुद्रासे स्थापन करना] पुन:____ॐ हो श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पूर्वदिशासंस्थित ऋषभ अजित जिन बिंब अत्र मम सन्निहितो भव भव" [ सन्निधापनं कल्याण करो] इस विधिसे स्थापन करके चारोंही सजोडे अपनी अपनी सामग्रीकी थाली संभाल लेवें और खडे होकर नीचे स्थापनकी हुई जिन प्रतिमाका अष्ट द्रव्यसे पूजन करें। तथाहि ___ ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पूर्वदिशासंस्थित ऋषभ अजित जिन बिवेभ्यो जलं समर्पयामि १ । चंदनं समर्पयामि ४ । दीपं समर्पयामि ५। अक्षतं समर्पयामि ६ । फलं समर्पयामि ७ । नैवेद्यं समर्पयामि ८।" पीछे चारों सजोडे ( चार पुरुष चार स्त्रियां एवं आठ जने) आरती उतारें। आरती. जय जिनवर देवा प्रभु जय जिनपति देवा । चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित सेवा जयदेव २॥ अंचली ॥ जय कैलास निवासी, जगजन हितकारी ॥ प्र० ज०॥ जय अष्टापद शिखरे, चउमुख जयकारी जयदेव जयदेव ॥१॥ दोय चार अठ दशकी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शोभा नहीं पारा ॥ प्र० शो० ॥ पीला सोल जिनेश्वर, भविजन सुखकारा | जयदेव जयदेव ॥ २ ॥ आरती उतार कर चारों सजोड़े अपनेअपने स्थानपर बैठ जावें । इति पूर्वदिशापूजनस्थापनम् ॥ 1 दक्षिण दिशा पूजन स्थापन. दक्षिण दिशाके चारों सजोडों को वास क्षेप करके दक्षिण दिशाका पूजन स्थापन करना "ॐ ह्री श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चै - त्यालये दक्षिणदिशा संस्थित संभव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रभ ४ जिनबिंब अत्र अवतर अवतर संवौषट् स्वाहा । " [ आहान मुद्रा से आह्वान करना । "आओ पधारो" कहना ।] "ॐ हो श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये दक्षिण दिशा संस्थित-संभव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रभ ४ जिन बिंब अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा ( स्थापन मुद्रा से स्थापन करना ) पुन: - "" “ ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये दक्षिणदिशा संस्थित-संभव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रभ ४ जिन बिंब अत्र मम सन्निहितो भव भव" (सन्निधापनं कल्याण करो ). इस विधि से स्थापन करके चारों ही सजोडे अपनी अ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनी सामग्री की थाली संभाल ले। और खडे होकर नीचे स्थापन करी हुई जिन प्रतिमा का अष्ट द्रव्यसे पूजन करें। तथाहि “ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये दक्षिणदिशासस्थित-संभव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रभ ४ जिन बिबेभ्यो जलं समर्पयामि १ चंदनं समर्पयामि २ पुष्पं समर्पयामि ३ धूपं समर्पयामि ४ दीपं समर्पयामि ५ अक्षतं समर्पयामि ६ फलं समर्पयामि ७ नैवेद्यं समर्पयामि ८।" पीछे चारों सजोडे आरती करें। __ आरती. जय जिनवर देवा प्रभु जय जिनपति देवा, चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित सेवा। जय देव जय देव-अंचली। दो नीला दो शामल, दोय उज्जल सोहे। प्रभु० दो। दो राता चौवीसही, भविजन मन मोहे ॥जयदेव २ लंछन देह बराबर, पद्मासनवंता प्र० पद्मासन नाशाभाग बराबर, चउ दिशी सोहंता ॥ जय० ॥ आरती उतार कर चारों सजोडे अपनी अपनी जगा बैठ जावें। इति दक्षिणदिशापूजनस्थापनम् ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चिम दिशा पूजन स्थापन। पश्चिम दिशाके चारों सजोडों को वासक्षेप करके पश्चिम दिशाका पूजन स्थापन करना।। "ॐ ह्री श्री कैलासाष्टापद शिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पश्चिमदिशासंस्थित-सुपार्थ १ चंद्र प्रभ २ सुविधि ३ शोतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत ८ जिन बिंब अत्र अवतर अवतर संवौषट स्वाहा ।" (आहान मुद्रासे आह्वान करना “आओ पधारो” कहना) ___“ ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पश्चिमदिशासंस्थित-सुपार्श्व १ चंद्र प्रभ २ सुविघि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत ८ जिन बिंब अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा ।" __ (स्थापन मुद्रासे स्थापन करना) पुनः " ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पश्चिमदिशासस्थित-सुपार्च १ चंद्र प्रभ २ सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत ८ जिन बिंब अत्र मम सन्निहि हितो भव भव." (सन्निधापनं कल्याण करो) इस रीति से स्थापन करके चारों ही सजोडे अपनी अपनी सामग्रीकी थाली संभाल लेवें और खडे हो कर नीचे स्थापन करी हुई जिन प्रतिमा का अष्ट द्रव्यसे पूजन करें। तथाहि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पश्चिमदिशासंस्थित-सुपार्श्व १ चंद्र प्रभ २ सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत ८ जिन बिबेभ्यो जलं समर्पयामि १ चंदनं समर्पयामि २ पुष्पं समर्पयामि ३ धूपं समर्पयामि ४ दीपं समर्पयामि ५ अक्षतं समर्पयामि फलं समर्पयामि ७ नैवेद्यं समर्पयामि ८" पीछे चारों सजोडे आरती करें। आरती.. जय जिनवर देवा प्रभु जय जिनपति देवा । चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित सेवा। जय देव जय देव । अंचली। सासु वहु दोय भगिनी, बंधव निन्नानुं । प्र० बंधव । सर्व परिकर प्रतिमा, आगम से जानु जयदेव २॥१॥ पुन मंदोदरी रावण नाटक आचरता। प्र० नाटक० ततथै ततथै थै थै जिनपद अनुसरता जयदेव २॥२॥ आरती उतार कर चारों सजोडे अपनी अपनी जगा बैठ जावें । इति पश्चिमदिशापूजनस्थापनम् ॥ उत्तर दिशा पूजन स्थापन । उत्तर दिशाके चारों सजोडों को वासक्षेप करके उत्तर दिशा का पूजन स्थापन करना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “ॐ ह्री श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये उत्तरदिशासंस्थित-धर्म १ शांति २ कुंथु ३ अर ४ मल्लि ५ मुनि सुव्रत ६ नमि ७ नेमि ८ पार्श्व ९ वर्द्धमान १० जिन बिंब अत्र अवतर अवतर संबौषट् स्वाहा।" _ [आहान मुद्रासे आह्वान करना " आओ पधारो" कहना] पुनः___"ॐ हो श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये उत्तरदिशासंस्थित-धर्म १ शांति २ कुंथु ३ अर ४ मल्लि ५ मुनि सुत्रत ६ नमि ७ नेमि ८ पाच ९ वर्द्धमान १० जिन बिंब अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा" (स्थापन मुद्रासे स्थापन करना) पुनः___“ॐ ह्री श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये उत्तरदिशासंस्थित-धर्म १ शांति २ कुंथु ३ अर ४ मल्लि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि ७ नेमि ८ पाच ९ वर्द्धमान १० जिन बिंब अत्र मम सन्निहितो भव भव ।” (सन्निधापनं कल्याण करो ) इस प्रकार स्थापन करके चारोंही सजोडे अपनी अपनी सामग्री की थाली संभाल लेवें और खडे होकर नीचे स्थापन करी हुई जिन प्रतिमाका अष्ट द्रव्य से पूजन करें तथाहि__ॐ हो श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये उत्तरदिशासस्थित-धर्म १ शांति २ कुंथु ३ अर ४ मल्लि ५ मुनि सुत्रत ६ नमि ७ नेमि ८ पार्थ ९ वर्द्धमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० जिनविबेभ्यो जलं समर्पयामि १ चंदनं समर्पयामि २ पुष्पं समर्पयामि ३ धूपं समर्पयामि ४ दीपं समर्पयामि ६ अक्षतं समर्पयामि ७ फलं समर्पयामि ८ नैवेद्यं समर्पयामि ८" पीछे चारों सजोडे आरती करें। आरती. जय जिनवरदेवा प्रभु जय जिनपति देवा । चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित सेवा-जयदेव जयदेव ॥ अंचली ॥ कोडाकाडी सागर, तीरथ जगतारु ॥प्र० ती० ॥ पौडी आठही दीपे, अष्टापद चारु ॥ जयदेव२ ॥१॥ दीपविजय कवि राजे, छाजे ठकुराई॥प्र० छा०॥ भरतेश्वर नृप शोभा, जिनकीरत गाई जयदेव२॥२॥ आतमलक्ष्मी हर्ष अनुपम, श्रीसंघ जयकारी॥श्री॥ वल्लभ जिनपद सेवा, भवसिंधु तारी॥जयदेव२॥३॥ __ इति उत्तरदिशापूजनस्थापनम् ॥ पीछे चारों दिशामें सब सजोडें एक साथ आरती उतारे। संपूर्ण आरती जलदी जलदो एक सरीखी सुरीली आवाजसें पढ़ें। आरती. जय जिन वरदेवा प्रभु जय जिनपति देवा । चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवा-जयदेव जयदेव ॥ अंचली ॥ जयकैलास निवासी, जगजन हितकारी-प्रभु जग० जयअष्टापद शिखरे, चउमुख जयकारी-जयदेव २॥१॥ दोय चार अठ दशकी, शोभा नहीं पारा, प्रभु शोभा० पीला सोल जिनेश्वर, भविजन सुखकारा जय०२॥२॥ दो नीला दो शामल, दोय उज्जल सोहे, प्रभु दोय० । दो राता चौवीसही, भविजन मन मोहे ॥जय०२॥३॥ लंछन देह बराबर, पद्मासनवंता-प्रभु पद्मा। नाशा भाग बराबर, चउदिशि सोहंता॥जयदेव२॥४॥ सासु वहु दोय भगिनी, बंधव निन्नानु, प्रभु बंधव० । सर्व परिकर प्रतिमा, आगमसे जानें ॥जयदेव२ ॥५॥ पुन मंदोदरी रावण, नाटक आचरता, प्रभु नाट। ततथै ततथै थैथै, जिनपद अनुसरता ॥जयदेव२ ॥६॥ कोडाकोडी सागर, तीरथ जगतारु, प्रभु तोरथ०। पौडी आठही दीपे, अष्टापद चारु ॥ जयदेव२॥७॥ दीपविजय कविराजे, छाजे ठकुराई ॥ प्रभु छाजे । भरतेश्वर नृप शोभा, जिनकीरत गाई ।।जयदेव २॥८॥ आतमलक्ष्मी हर्ष अनुपम,श्रीसंघ जयकारी,प्रभु श्री० वल्लभ जिनपद सेवा, भवसिंधु तारी ॥जयदेव२॥९॥ ॥ इति ॥ [ पूजाकी.समाप्तिमें भी यही आरती ६४ स्नात्रिये सब मिलकर करें] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाद में खमासमण देकर " अविधि आशातना हुई होवे तस्स मिच्छामिदुक्कड" कह कर सब सजोडें मंडपसे विदाय होजावें । इस रीतिसे सर्व विधिके समाप्त होजाने बाद ६४ स्नात्री एक एक तर्फ १६ के हिसावसे चारोंही तर्फ आमसामने आठ आठ कतार बंध प्रत्येक पूजामें पूजाकी सामग्री लेकर खडे हो जावें और पूजा पढानी प्रारंभ कर देवें । ॥ इति ॥ । सोलह सजोडोंकी पूजाकी सामग्रीकी थालीमें और ६४ स्नात्रीकी पूजाकी प्रति थालीमें अपनी इच्छानुसार नकद चढाना योग्य है । कमसे कम प्रति थाली दो आनी तो अवश्य होनी चाहिये । पूजामें जो कुछ नकद चढाया जावे वो भंडारमें देव द्रव्यकी वृद्धिमें समझना । यदि किसीकी रचनापूर्वक अति उत्साहसे उत्सव करनेकी इच्छा न होवे और यही पूजा पढानेकी इच्छा होवे तो वो यथाशक्ति लाभ लेकर अपने उत्साहको पूरा कर सकता है । उसके लिये अष्ट द्रव्यादि जो जो उपयोग की वस्तु होवें उनका होना तो जरुरी है । आठ द्रव्योंकी आठ थालीमें कमसे कम दो दो आनीतो नकद अवश्य रखनी चाहिये, अधिकके लिये अपनी इच्छा । बाकी जहां जहां पूजा आदिका जो जो रीवाज होवे वहां वहां उसका यथाशक्ति उपयोग रखना चाहिये । ॥ इतिशुभम् ॥ -- --- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथाष्टापद कटपः॥ ___(आर्यावृत्तम् ) वरधर्म कीर्ति ऋषनो विद्यानन्दाश्रितः पवित्रितवान् , देवें वन्दितो यं, स जयत्यष्टापद गिरीशः॥१॥ यस्मिन्नष्टापदे ऽजूदष्टापद मुख्य दोष लद हरः, अष्टापदान ऋषनः, ॥ स ॥२॥ ऋषन सुता नवनवति र्बाहुबलि प्रनृतयः प्रवर यतयः, यस्मिन्न नजन्नमृतं ॥ स ॥३॥ अयुजुनिवृत्ति योगं वियोग नीरव श्व प्रनोः समकं, यत्रर्षि दश सहस्राः ॥ स० ॥॥ यत्राष्ट पुत्र पुत्रा, युगपद् वृषनेण नव-नवति पुत्राः, समयैकेन शिव मगुः ॥ स० ॥५॥ रत्नत्रय मिव मूते स्तूप त्रितयं चितित्रय स्थाने, यत्रास्थापयदिन्छः ॥ स ॥६॥ सिहायतन प्रतिम,सिंह निषयेति यत्रसुचतुर्दाः, जरतो ऽरचयञ्चैत्यं ॥स०॥७॥ यत्र विराजति चैत्यं, योजन दीर्घ तदर्ध पृथुमानम् , क्रोश त्रयोच्च मुच्चैः ॥ स० ॥॥ यत्र व्रात प्रतिमा व्यधाचतु. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विंशतिं जिन प्रतिमाः, जरतः सात्म प्रतिमाः, ॥स ॥ए॥ स्वस्वाकृति मिति वर्णाक वर्णितान् वर्तमान जिन बिंबान्, जरतो वर्णित वानिह ॥सण ॥ स० ॥१०॥ स प्रतिमा नव-नवति बंधु स्तूपां स्तथाईत स्तूपम् , यत्रारचय चक्री ॥ स०॥११॥ जरतेन मोह सिंहं हन्तुमिवाष्टापदःकृताष्टपदः,शुशुनेऽष्ट योजनो यः॥स॥१॥ यस्मिन्ननेक कोट्यो महर्षयो जरत चक्रवर्त्याद्याः, सिEि साधित वन्तः ॥ स० ॥ १३॥ सगर सुताग्रे सवार्थ शिवगतान्जरत वंश राजर्षिन् , यत्र सुबुझिरकथयत् ॥ स० ॥ ॥१४॥ परिखा सागर मकरं सागराः सागराश्रया यत्र, परितो रदिति कृतये ॥ स० ॥१५॥ दालयितु मिव स्वैनो जैनो यो गंगयाश्रितः परितः, संतत मुखोल करैः॥ सण ॥१६॥ यत्र जिन तिलक दानादमयंत्यापे कृतानुरुप फलम् , नाल स्वनाव तिलकं ॥ स०॥ १७॥ यम कूपारे कोपादिपन्नलं वालिनांहिणाक्रम्य, आरावि रावणोऽरंस॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुज तंत्र्या जिन मह कृलंकेंसो ऽवाप यत्र धरऐजात्, विजयामोघां शक्तिं ॥ स०॥ १५॥ यत्रारिमपि वसन्तं तीर्थे प्रहरन् सुखेचरोऽपि स्यात्, वसुदेव मिवा विद्यः ॥ स० ॥२०॥ अचले ऽत्रोदय मचलं स्वशक्ति वन्दित जिनो जनो बनते, वीरो ऽवर्णयदिति यं ॥ स०॥१॥ चतुर श्चतुरोऽष्ट दश सौ चापाच्यादि दिनु जिन बिंबान्, यत्रावन्दत गणनृत् ॥ स॥२॥प्रजु नणित पुंमरीका ध्ययनात् सुरो ऽत्र दशमो ऽनृत्, दश पूर्विघुमरीका ॥स॥३॥ यत्र स्तुत जिन नाथो दीक्षित तापस शतानि पंचदश,श्री गौतम गणनाथः ॥स॥॥ श्त्यष्टापद पर्वत श्व योऽष्टापद मय श्विर स्थायी, व्यावर्णि महा तीर्थ, स जयत्यष्टापद गिरीशः ॥२५॥ इति श्री अष्टापद कल्पः॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वन्दे वीरमानन्दम् श्री अष्टापद तीर्थपूजा. दोहरा. ऋषन शांति नेमि प्रजु, पारस जिनवर वीर । चरण कमल मस्तक धरुं, जय जग तारण धीर॥१॥ पूजन दोय प्रकारसे, जिनशासन विख्यात । प्रव्य नाव पूजन कही, महानिशीथे वात ॥२॥ जावस्तव मुनिवर करे, चारित्र जिनगुण गान । जस फल शिव संपद वरे,अदय अविचल थान॥३॥ जव्यस्तव जिन पूजना, त्रिविध पंच परकार । अंठ दसैसत कवी सकी, अष्टोत्तर जयकार ॥॥ अव्य नाव दोनों सही, श्रावक करणी जान । नाव नीर सींचन करें, समकित तरुवर मान ॥५॥ फल होवे अति नावसे, गुणि गुण करत वखान । पूजक नाव गुणो करूं; वर्णन सुखको निदान ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (माढ-मोरे गमका तराना-) अष्टापद वंदो पाप निकंदो जवजल तारनहार, प्रनु आदि जिनंदो शिवसुख कंदो नावसे वंदो जवजल तारनहार ॥अंचली॥ लक्ष्मीसूरि तपगबपतिरे, श्रुत गंजीर उदार। जावस्तव पूजन कियोरे, स्थानक वीस प्रकार ॥प्रजु॥१॥ स्थानक वीसको सेवनारे, तीर्थकर पद पाय । महिमा जगमें विस्तरेरे, रंकनको करे राय ॥ प्रजु०॥२॥ जसविजय वाचक गणारे, कीनो पूजन नाव । नवपद श्रीसिक चक्रकोरे, पूजा विविध बनाव ॥प्रजु० ॥ ३ ॥ रूपविजय पूजन कियोरे, जाव स्तवन गुणग्राम । आगम पणतालीसकोरे, पंचज्ञान गुण धाम ॥ प्रजु० ॥४॥वीर विजय वर्णन कियोरे, नावस्तवन जगवान । अष्टकर्म सूदन प्रजुरे, चउसठ पूजा गान ॥ प्रजु॥५॥आगम पैंतालीसकीरे, नवनवति परकार । पूजा रची व्रत बारकीरे, श्रावकके हितकार ॥ प्रजु० ॥६॥ विजयानंद सूरीशनेरे,कीनो धर्म उझार । पूजन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध प्रकारसेरे, दरसायो मग सार॥प्रजु॥॥ तस वबन लघु सेवकेरे, मंदमति गुणहीन । तास प्रनावे जावसेरे, नक्ति रचना कीन ॥ प्रजुगा॥ नमन करी गुरु देवकोरे, सिमरी सारदमाय । दीपविजय कविराजकीरे, शुज रचना सुपसाय ॥प्रजु० ॥ ए ॥ हंस विजय मुनिराजकीरे, शुन आज्ञा अनुसार । नगर समानामें रचीरे, पूजा जय जयकार ॥ प्रजु० ॥ १०॥ आतम लक्ष्मी कारणीरे, पूजा जिनवरदेव। हर्षे वहन कीजियेरे जिनवर पदकी सेव ॥ प्रजु० ॥ ११ ॥ पहली जलपूजा. दोहरा. अष्टापद तोरथ तनी, पूजा अष्ट प्रकार। अष्टापद पूरे हरे, अष्टापद जयकार ॥१॥ अष्टापद उत्सव करे, जो नर धर शुज आस । तास विधि संदेपसे, सुनिये मन उदास ॥२॥ (वसंत-होइ आनंद बहाररे.) अष्टापद हितकाररे, नविसेवो तीरथको॥अंचली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नूमी शुद्ध बनाय केरे, लीजे ऽव्य सुधाररे ॥ नवि० ॥१॥ अष्टापद गिरि राजकारे, कीजे शुज आकाररे ॥ नवि० ॥२॥ दोय चार अठ दस प्रजुरे, पूव दक्षिण धाररे ॥ नवि० ॥३॥ पश्चिम उत्तर चल दिशारे, थापे जिनवर साररे ॥जविण॥॥ आपाठ नर चन दिशिरे, कलश लश्मनोहाररे ॥नविण॥॥से आगे अव्यसेरे, पूजनका अधिकाररे ॥ नविण ॥६॥ बातम लदमी हर्षसेरे, ववन तीरथ ताररे नवि०॥७॥ दोहरा. पूर्व तृतीयारक रहे, लाख चुरासी सेस। : बादल होवे सब जगा, समकाले दस देस॥१॥ जलधर जाति पांचके, वरसे सम मिट जाय। नूमी विषमाकारमें, ऊंची नीची थाय ॥२॥ अवसर पिणी उत्सर्पिणी, लोम विलोम कहाय। शाश्वत नावे जिन कहे, काल खनाव बनाय॥३॥ ___(तुमे तो भले बिराजोजी.) तुमे तो जले बिराजोजी अष्टापद तीरथक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खामी जले बिराजोजी ॥ अंचली ॥ आरे तीन गर चौवीसी, सागर कोमाकोम । नवमें काल युगलका होवे, कहते गणधर जोम ॥ तुमे ॥१॥ आरे तीन ऋषन चौवीसी, इनमें जी यह रीत । ऋषन प्रजुके समय अगरां, कोमाकोमी मीत ॥ तुमे॥२॥पांच नरत अरु पांच श्रावत, दश क्षेत्रे समनाव । दस अप सागर कोमाकोमी, एक सरीसा नाव ॥ तुमे ॥ ३॥ इस कारण पलवति देत्रे, युगलिक नाव समान।जंबूझीप पन्नत्ति जीवा, निगमे गणधर वान ॥ तुमे ॥४॥लाख चौरासी पूरव बाकी,तीसरा थारा जान । नानि नृप कुलकरके कुलमें, प्रगट नये जगवान॥तुमे॥ ॥५॥ आतम लक्ष्मी प्रगट करनको, प्रगट नये महाराज । आतम लदमी दर्षे वसन, नमिये श्री जिनराज ॥ तुमे ॥६॥ दोहरा. अष्टापद गिरि है कहां, कितना है परमान । कैसे अष्टापद हुओ, सुनिये तास वखान ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (सारंग-केहरवा-हमें दम दे कर.) कारण तीरथ जिन प्रगटाना ॥अंचली॥ जंबूझीप दक्षिण दरवाजा, मध्यनाग वैताढय कहाना ॥ का० ॥१॥ नगरी अयोध्या जरतकी कहिये, जिनवर गणधर यह फरमाना का॥२॥ निकट अयोध्या अष्टापद गिरि, बत्तीस कोश ऊंचा परमाना ॥ का०॥३॥ तिस नगरीमें नालि नरपति, मरुदेवा तस नार वखाना ॥ का० ॥४॥ तस कुदी शुक्तिमें मोती, अवतरिया जिन त्रिजुवन राना ॥ का० ॥५॥चौथ वदि आषाढकी जानो, च्यवन कल्याणक श्रीजिन गानाका॥६॥ चैत्र वदि अष्टमी प्रनु जाये, जन्म कल्याणक त्रिजुवन नाना ॥ का० ॥॥ आतमलदमी वहन हर्षे, विलसे विलुवन जन सुख माना ॥का॥॥ काव्यगंगा नदी पुन तीर्थ जलसे कनकमय कलशे भरी, निज शुरू नावे विमल थावे न्हवण जि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवरको करी। जव पाप ताप निवारणी प्रजु पूजना जगहित करी, करु विमल आतम कारणे व्यवहार निश्चय मन धरी ॥१॥ मंत्र. ॐ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेखाय पूर्वदिक् संस्थित-ऋषन १ अजितश् दक्षिण दिक् संस्थित संनव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रन ४पश्चिमदिक् संस्थित-सुपार्श्व १ चंप्रनश्सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत -उत्तरदिक् संस्थित धर्म १ शांति २ कुंथु ३ अर ४ मवि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि ७ नेमि G पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विं. शति जिनाधिपाय जलं यजामहे स्वाहा ॥१॥ दूसरी चंदनपूजा. दोहरा. दूजी पूजा नवि करो, चंदनकी सुखकार । चंदन लेपन जीनतनू, वंबित फल दातार ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (केसरिया थासुं-यह चाल) जिन जन्म कल्याणक उत्सव करेरे शुन जावसे ॥ अंचली ॥ चैत्र वदि अष्टमी मंगलिक दिन मध्य रात्रि शुन वेला। जिन जन्मोत्सव कारण मेरु सुर सुरपति होय नेला रे ॥ जि॥१॥ पांच रूप करके सुरपति जिन एकरूप ग्रही हाथे। दोय रूप चामर करते हैं, एक बत्र धरे माथे रे ॥जि ॥२॥ वज्र उबालत चालत आगे एक रूप सुरवामी । मेरु पर जा गोदमें प्रजुको पधरावे सुख कामी रे ॥ जि० ॥३॥ साठ लाख एक कोटि कलशे स्नात्र करावे लावे । सहस चसट्ठी एक अनिषेके वार अढीसौ थावे रे ॥ जि ॥४॥ विधिसे जन्म महोत्सव करके, मात पास लेश आवे। चिरंजीव आसीस देयके, छीप नंदीश्वर जावे रे ॥ जि० ॥५॥ क्रमसे नानि नरपति सुरपति, मिल प्रनु नाम ठरावे । ऋषनदेव प्रनु बातम लदमी, वन अति हर्षावरे ॥ जि॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ दोहरा. बंश गोत्र प्रनु ऋषनका, थापे सुरपतिराज । सागर कोमाकोममें, वरत रहा है आज ॥१॥ वनराजी हुश् मेघसे, हुयो काश समुदाय। सातवार जगे सही, श्ख रूपे थाय ॥२॥ (कवाली.) प्रनु श्री आदि जिनवरसे, वंश और गोत्र गया है। यही शास्त्रोंमें गणधरने, खुलाशा खूब गाया है ।प्र० अंचली॥ हरि उत्सादसे प्रजुके, वंश और गोत्र थापन को। लंबी सी श्तु लष्ठिको लिये प्रनु पास आया है ॥ प्र० १॥ पसारा हाथ जिनजीने, हरि खुश हो दिया श्छु। प्रजुका वंश इक्ष्वाकु, गोत्र काश्यप कहाया है ॥ २॥ प्रजु दो वीस ही इनमें, हुए दो वीस बाइसमें। हरिवंश गोत्र गौतममें, श्वाकु वंश बाया है। प्र० ३॥ समय जानी पिता माता, सुनंदा और मंगलाका । मिली संग देव देवीके, विवाहोत्सव रचाया है॥४॥ हुये सोपुत्रं दो पुत्री जरत बाहु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ बली म्होटे । जरतसे सूर्य बाहुसे, शशी वंशी सुहाया है॥प्र०५॥ सूत्र श्री कल्पमें प्रजुके, गोत्र और वंशका वर्णन । आतम लक्ष्मी प्रजु हर्षे, वजन मनमें समाया है। प्र०६॥ काव्यसरस चंदन घसिय केसर नेली मांही बरासको, नव अंग जिनवर पूजते नवि पूरते निज आसको । जव पाप ताप निवारणी प्रनु पूजना जग हितकरी, करु विमल आतमकारणे व्यवहार निश्चय मन धरी ॥२॥ मंत्रजी श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेसाय पूर्वदिक् संस्थित-ऋषन १ अजित ५ दक्षिण दिक् संस्थित-संनव १ अभिनंदन सुमति ३ पद्मप्रन ४ पश्चिमदिक् संस्थित-सुपार्श्व १ चंप्रन ५ सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ वि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ २६ मल अनंत ७ उत्तरदिक् संस्थित-धर्म १ शांति ५ कुंथु ३ अर ४ मल्बि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि नेमि पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय चंदनं यजामहे स्वाहा॥ तीसरी पुष्प पूजा. दोहरा. पूजा कुसुमकी तीसरी, करिये नवि गुणहेत । श्ह लव परजव सुख लहे, शिव संपद संकेत॥१ मालति मस्या मोगरा, केतकी जा फूल । यतनासे जिन पूजिये, होवे लाल अमूल ॥२॥ (लावनी-मराठी-ऋषभनिनंद विमलगिरिमंडन.) आदि जिनेश्वर आदि नरेश्वर, जगजीवन हितकारीरे । प्रनु अति उपकारी, कियो जिन नीति मार्गको जारीरे ॥अंचली ॥ अवसर्पिणीमें प्रथम जिनंदका, जीतकल्प अवधारीरे। उत्सर्पिणीमें कुलकर मानो नोतिका अधिकारीरे ॥श्रा० १॥ थापन राज्य प्रजुका सुरपति, आवे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय विचारीरे। मंगप रचना सुंदर करके करे उत्सव मनोहारीरे ॥ आ॥ राज्याभिषेक कियो प्रजुजीको, सिंहासन पदधारीरे । बत्र चमर आदिसे शोना, करते प्रनु अलंकारीरे॥आण्३॥ आये युगलिक जलको लेकर, देखे प्रजु श्रृंगारीरे। दक्षिण अंगुष्ठे जल सींचे, उत्सव मनमें धारीरे॥ आ४॥ युगलिक नरका देख विनयगुण नगरी विनीता सारीरे । उ हुकम वैश्रमण वसावे, नाम अयोध्या वारीरे ॥ आप ५ ॥ जंबू दक्षिण दरवाजा और, वैताढ्य मध्य अनुसारीरे। - तम लक्ष्मी विनीता वसन, आदिजिनंद बलि. हारीरे ॥ आ॥ ६॥ दोहरा. युगलिक रीति निवारके, शुजनीति व्यवहार। अवधपति वरताश्या, ये है अनादि चार. १ (गिरिवर दर्शन विरलापावे यह चाल-पीलू.) जय जिनवर जगनीति चलावे, नीति घ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ लावे अनीति मिटावे ॥ अंग ॥ पांच शिल्प प्रनु मुख्य बतावे, वीस वीस तस नेद जनावे ॥जयर बहत्तर पुरुष कला सुखदार, चउसठ नारी कला सिखलावे ॥ जय०२॥ लेखन गणित क्रिया अ. ष्टादश, श्म नीति सब प्रनु दरसावे ॥जय० ३॥ राजनीति सेना चतुरंगी, राजा प्रजाका कृत्य सुनावे ॥ जय० ४॥ पृथक पृथक देश राज्य पुत्रको, नंदन नामसे देश बसावे ॥ जय०५ ॥ व्यासी लाख पूरव घरवासे, पूर्ण करी प्रजु दीदा पावे॥ जय ६॥ वरसी दान देश जगस्वामी, अनुकंपा मारग वरतावे ॥ जय० ॥ चैत्र वदि अष्टमी दिन दीदा, कल्याणक प्रनु ऋषन कहावे ॥जयण ॥ एक हजार वरस बद्मस्थे, एक वरस तप कीनो नावे ॥ जय० ए॥ अक्षय तृतीया श्रेयांस राजा, पारणा श्छु रससे करावे ॥ जय० १० ॥ क्षीरसे पारणा तेश्स जिनका, ऋषनका श्तु रससे सुहावे ॥जय०११॥ प्रथम प्रनुका दाता क्षत्रिय, ब्राह्मण तेइस जिन फरमावे ॥ जय० १५ ॥ सुर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुख आतम लक्ष्मी जोगी, वहन मनमें अति हर्षावे ॥ जय० १३॥ काव्यसुरनि अखंमित कुसुम मोगरा थादिसे प्रनु कीजिये, पूजा कर शुज योग तिग गति पंचमी फल लीजिये । नव पाप ताप निवारणी प्रनु पूजना जग हितकरी, करु विमल बातम कारणे व्यवहार निश्चय मन धरी ॥३॥ मंत्रॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेंजाय पूर्वदिक् संस्थित ऋषन १ अजित श् दक्षिण दिक् संस्थित संजव १ अभिनंदन ५ सुमति ३ पद्मप्रन ४पश्चिम दिक्संस्थित-सुपार्श्व१ चंद्रप्रन सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत -उत्तरदिक संस्थित-धर्म १ शांति कुंथु ३ अर ४ मबि ५ मुनिसुव्रत नमि नेमि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय पुष्पाणि यजामहे स्वाहा ॥३॥ चौथी धूपपूजा. दोहरा. पूजा धूपकी कीजिये, चौथी चतुर सनेह । जाव वृक्षको सींचिये, मानी अमृत मेह ॥१॥ ( थई प्रेमवश पातलिया.) जविजीवको हितकारी, प्रनु पूजनकी बलिहारीरे ॥ नवि० अंचली॥आये विचरते अवध पुरि वदि आवम फाल्गुन मासे । जस ध्यान सु. कल ऊजासे, हुए घाति करम क्षय चारीरे ॥ ज० ॥१॥ केवलज्ञान दरस तब प्रगटे लोका लोक प्रकाशी, जिम रेखा हस्त विकाशी, आवे सुर सुरपति नर नारीरे ॥ नवि० ॥२॥ समवसरण रचना सुर कीनी नरतजी वंदन आवे, मरुदेवाको संग लावे, माता मन हर्ष अपारीरे ॥ वि० ॥३॥ समजावे बंधनको बेदीमाता मोक्ष पधारी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हु शिवपद मारग जारी, जिनशासन जग जयकारोरे ॥ नवि० ॥४॥ संघ चतुर्विध थापे प्रनुजी अवसर्पिणीमें आदि, जिनशासन रीति अनादि, तीर्थकर पद अनुसारीरे ॥ नविण ॥५॥ लाख प्रव विचरी प्रनु अंते मोद समयको जानी, अष्टापद आये ज्ञानी, दश सहस मुनि परिवारी रे ॥ नवि०॥६॥ आतम लक्ष्मीकारण सबने हर्षे अनशन कीना, मुक्तिववन पद लीना, दियो आवागमन निवारीरे ॥ नवि० ॥ ७ ॥ दोहरा. माघ वदि तेरस कही, मेरु तेरस नाम । कल्याणक पंचम हुर्ड, अष्टापद शुल गम ॥१॥ कल्याणक उत्सव करे, चनसठ सुरपति आय। प्रनु सेवाको मानते, निज आतमसुखदाय ॥२॥ (लेली लेली पुकारे वनमें ) प्रनु आदि जिनेश्वर स्वामी, हुए परमातम पदगामी ॥ प्र० अंचल॥ मिल चउसठ सूरपति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवे, प्रनु विरह शोक दरसावे । निरुत्साह करे सब काम, लेवे वार वार प्रनु नाम ॥प्र० ॥१॥ शुक जलसे प्रनु न्दवरावे, बावनाचंदन चरचावे । जिनवर गणधर मुनि तीन, सुरपति सुर विधि सब कीन ॥ ॥२॥ चय चंदन काष्ठ बनावे, देव अग्नि कुमार जलावे । करे ठमी मेघ कुमार, ग्रहे दाढा हरि आचार ॥प्र०॥३॥ करी पीठ पायुका थापे, कीर्ति जस जगमें व्यापे । श्म जंबू छीप प्रज्ञप्ति, कहे आवश्यक नियुक्ति॥ ॥४॥ करी नंदीश्वर अगर, उत्सव हरि स्वर्गे जाइ। करे जिनदाढाकी सेवा, समकित फल निर्मल लेवा ॥प्र० ॥५॥आतमलक्ष्मी प्रनु हर्षावे, पूजा चौथी पूरण थावे । वबल वर्णन अष्टापदका,सुनी नाश होवे आपदका ॥ प्र० ॥ ६॥ काव्य दशांग धूपधुखायके जवि धूप पूजासे लिये, फल उर्ध्वगति सम धूम दहि निज पाप जवज़ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वके किये । जवपाप ताप निवारणी प्रनु पूजना जग हितकरी, करु विमल बातम कारणे व्यवहार निश्चय मन धरी ॥ ४ ॥ मंत्रॐ ह्री श्री परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेंाय पूर्वदिक संस्थित-ऋषन १ अजित श्-दक्षिण दिक् सं. स्थित-संनव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रन ४-पश्चिमदिक् संस्थित-सुपार्श्व १ चंद्रप्रन ५ सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत -उत्तर दिक् संस्थित धर्म १ शांति २ कुंथु ३ अर ४ महि५मुनिसुव्रत ६नमिनेमि G पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय धूपं यजामहे स्वाहा ॥४॥ पांचमी दीपक पूजा दीपक पूजा पंचमी, पंचम गति दातार । जाव धरी नविकीजिये,आतम निश्चय धार ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (देश-त्रिताल-लावनी) अवसर्पिणी आदिनाथ हुये निरवानी, अष्टापद तीरथ नाथ नमो नवि प्रानी ॥अंचली। किया अनशन प्रजुने जान जरत वहां आवे, चल अवधपुरीसे पाद अष्टापद जावे । पर्यकासन संस्थित प्रजुको नावे, परिकर्मा करके तीन सीसको नमावे । धन्य धन्य जगत प्रनु आप नरत मुखवानी ॥ अष्टा० ॥१॥ निर्वाण समय जरतेश्वर मूळ खावे, समजावे सुरपति सोग को दूर हटावे । स्वामी संस्कार निकट नूतलमें करावे, सुंदर मंदिर जरतेश्वर पाप खपावे। दियो सिंह निषद्या नाम अतिशय ज्ञानी ॥ अष्टा ॥२॥ निज निज जिन देह प्रमाण प्रतिमा मानो, चल पासे जिन चवीस विराजे जानो। पूर्वादि दिशि दोय चार आठ दश सोदे, ऋषनादि वीरजिनंद नवि मन मोहे । सम नाशा एक समान दृष्टि वैरानी ॥ अष्टा० ॥३॥ चत्तारी अउ दस दोय वंदना जावे, दक्षिण दिशि मूल प्रवेश हिसाब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहावे । संजव आदि सुपार्श्व आदि धर्मादि, ऋषनादि नमिये गमिये कर्म अनादि । पूजक पूजासे शीघ्र वरे शिवरानी ॥ अष्टा ॥४॥संग शाश्वती प्रतिमा चार जरत पधरावे, त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित दरसावे । नवनवति जाता और नगिनी दो माता, मणिमय मूर्ति सब स्थापन कर गुणगाता । सेवा करती निज मूर्ति साथ जरानी ॥ अष्टा० ॥५॥ नारतपति पूजा अष्ट अव्यसे करते, आरति मंगल दीपक विधि सब अनुसरते । मणिरत्न सुवर्ण रजत पुष्पोंसे वधावे, *अदत मोती श्म संघ वधावे नावे । बातम लक्ष्मी हर्षे ववन धन्य मानी ॥ अष्टा ॥६॥ दोहरा. नारतपति चिंतन करे, तीरथ जग जयवंत । लोजी लोक अज्ञानसे, विषम काल विरतंत॥१॥ * इस स्थानपर मोती सुवर्ण रजत पुष्प रंगीन अक्षत पु. पादिसे श्रीसंघ प्रभुको वधावे और पूजाकी समाप्तिमें पुन: प्रभुको वधावे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न करे को आशातना, कारण जरत नरेश । जाग विषम गिरि तोमके, कोनासाफ प्रदेश ॥२॥ ( सोहनी-कहरवा-सिद्धगिरि तीरथपर जानाजी) अष्टापद तीरथ गानाजी, गानाजी सुख पानाजी ॥ अष्टापद० अंचली ॥ एक एक योजनके अंतर, आठ किये सोपानाजी ॥ अष्टा ॥१॥श्म अष्टापद तीरथ थापे, जरत जरतका रानाजी ॥ अष्टा० ॥२॥ अरिसा नवनमें केवल पायो, अंत हुये निरवानाजी ॥ अष्टा० ॥३॥ क्रमसे आठ पाट तक केवल, गणांग आठमा गनाजी ॥ अष्टा०॥४॥ पांचमी पूजा तीरथ थापन, अष्टापद गिरि मानाजी ॥ अष्टा०॥५॥ आतमलदमी चउबीस जिनवर, वजन हर्षअमानाजी॥अष्टा॥६॥ काव्यजिम दीपके परकाससे तम चौर नासे जानिये, तिम नाव दीपक नाणसे अज्ञान नास वखानिये । जव पाप ताप निवारणी प्रजु पूजना जग हितकरी, कर विमल आतम कारणे व्यवहार निश्चय मन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्र धरी ॥५॥ ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेप्राय पूर्वदिक संस्थित-ऋषन र अजित श्-दक्षिण दिक्संस्थित संजव १ अनिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रन ४-पश्चिमदिक् संस्थित-सुपार्श्व १ चंपनर सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल अनंत -उत्तर दिक् संस्थित-धर्म १ शांति कुंथु अर ४ मल्लि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि 5 नेमि 5 पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय दीपकं यजामहे स्वाहा ॥ ५॥ छट्ठी अदत पूजा दोहरा. बट्ठी पूजा जिनतनी, अदतकी सुखकार । जाव धरी नविकीजिये, अदत फल दातार॥१॥ पचास लाख कोमि सही, बारा अर्ध प्रमान । शासन अविचल ऋषनका, सुरपद शिवपद खान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( अब मोहे पार उतार चिंतामणि) जगजीवन आधार ऋषनजी जगजीवन थाधार वंशपरंपर पाट असंख्या आवागमन निवार ॥अंचली॥ सूर्य यशासे चउद लाख नृप, पहुंचे मोक्ष मकार । एक गया सर्वार्थ सिझमें, त्यागन कर संसार ॥१॥ चनद लाख मोद सर्वारथ, सिके एक विचार । ऋण। एक एक सरवारथ सिके, संख्यातीत उदार ॥२॥ चनद लाख मोदे सरवारथ, सिके दो अवतार। ऋ । तीन चार यावत पंचाशत, सर्व असंख्या धार ॥३॥ चउद लाख नरपति सरवारथ, सिके पद अवधार । ऋ० । एक गया राजा मोदे श्म, सर्व विलोम प्रकार ॥४॥ इत्यादि वर्णन नंदि अरु, सिक दंमिका सार । ऋ । आतम लदमी निज गुण प्रगटे, वखन हर्ष अपार ॥५॥ दोहरा. ऋषनसेन मुनि जानिये, घूमरीक गणधार । क्रमसे आदि जिनंदके, पाट असंख विचार॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (रेखता-जिनंद जस आज मैं गायो) शासन आदिनाथ जयकारी, असंख्या पाद सुखकारी । गये मुक्तिमें नरनारी, स्वर्ग बबीस अवतारी ॥१॥ अर्ध आरामें जिनवरका, प्रनु श्री आदि ईश्वरका । चला शासन जगदीशा, अर्धमें तीन और वीशा ॥२॥ तीरथ प्रजु थापना सोहे, चतुर्विध संघ मन मोहे । गणि गण अंग विस्तारा, अनादि तीर्थ आचारा ॥३॥ प्रनाकर वंश प्रनु सागर, असंख्या पाट गुण आगर । जरत चक्री ऋषन वारे, सगर चक्री अजित सारे ॥४॥ नूप जितशत्रु कुलनंदा, हुए सुत दोय रवि चंदा । अजित जिनराज सुखकारी, सगर नृप चक्री पद धारी ॥ ५॥ आतम सदमी प्रजु करता, अनादि नरमके हरता। हर्ष धरी सेविये नावे, वहन प्रजु तीर्थ गुण गावे ॥६॥ काव्यशुन ऽव्य अक्षत पूजना स्वस्तिक सार बनाश्ये, गति चार चूरण जावना नवि नावसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन नाश्ये । नव पाप ताप निवारणी प्रजु पूजना जगहित करी, करु विमल बातम कारणे व्यवहार निश्चय मन धरी ॥६॥ मंत्र-- ॐ हूँ। श्री परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेंजाय पूर्वदिक् संस्थित ऋषन १ अजित २ दक्षिण दिक् संस्थित संजव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रन ४ पश्चिमदिक् संस्थित सुपार्श्व १ चंपन सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत ७ उत्तर दिक् संस्थित धर्म १ शांतिकुंथु ३ अर ४ मलि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि ७ नेमि न पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय अदतान् यजामहे स्वाहा ॥६॥ सातमी फलपूजा. दोहरा. फल पूजा प्रजु सातमी, मोद महा फल देत । शुल नावे नवि कीजिये, पुण्य अतुल संकेत ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (सोहनी-ढुंढ फिरा जगसारा.) अष्टापद सुखकारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अंचली ॥ पुण्यवंत यह तीरथ नेटी, सुख लेवे फुःख देवे मेटी। तीरथ तारन हारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ० ॥१॥ तीरथ अष्टापद नवितारण, चक्री सगरसुत वंदन कारण । आये साठ हजारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ॥२॥ दक्षिण दिशि संजव अभिनंदा, सुमतिनाथ पद्म प्रन चंदा । वंदन करे जिन चारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥अ॥३॥ पश्चिमदिशि सुपार्श्व जिनंदा, चंड प्रन श्री सुविधि मुनंदा । शीतल शीतलकारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ० ॥ ४ ॥ श्रेयांस वासुपूज्य जिनेसर, विमल अनंत जिन नाथ जुगेसर । वंदन जवजल पारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ अ॥५॥ उत्तरदिशि श्री धर्म सुहंकर, शांति कुंथु अरनाथ धुरंधर । श्रीमद्धिनाथ जुहारा सुखकारा नविजन कीजे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अर्चना ॥ अ॥ ६॥ मुनिसुव्रत नमि नेमि धीर, पार्श्व वीर नमे पूव तीर । ऋषन अजित जयकारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ ॥७॥ नमन करे श्म जिन चळवीश, आतम लक्ष्मी कारण ईश। वसन हर्ष अपारा सुखकारा, नविजन कीजे अर्चना ॥ अ॥७॥ दोहरा. हम कुल नरत नरेसरु, कीना एह विहार । धन मरु देवी मात को, धन्य ऋषन अवतार. ॥१॥ विषम कालको जानके, तीरथ रक्षा काज। योजन योजन अंतरे, पौमो आठ समाज. ॥२॥ अष्टापद गिरि धन्य है, धन्य जरत महाराज। धन्य हमारे नाग्य हैं, जनम सफल हम आज.॥३॥ (श्री राग-वीरजिनदर्शन नयनानंद.) तीरथ सेवा शिवतरु कंद-तीरथ सेवा-अंचली चक्री सगर सुत चितमें चिंतत, तीरथ रक्षा लाज अमंद । अष्टापद फिरती चढ तरफी, करिये खाइ अतिही महंद॥ ती० १॥ शत योजन खुदवा खाइ, शत्रुजय महातम यूं कहंद। धूर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परी जब नाग निकाये, आये नाग यह कथन करंद ॥ ती० ॥ नागलोकके बाल बुद्धि वश, अपराधी हो सगर फरजंद । तुम अपराध तरफ जो देखें, बाली नस्म करें तुम खंद ॥ ती०३ ॥ ऋषन वंश के हो इस कारण, क्रोध नहीं हम मनमें धरंद । नागकुमार जवन रत्नोंके, रजरेणुसे होत मलंद ॥ त०४॥ माफ करो गुणवंता सऊन, हितशिदा हम ध्यान लहंद । नागकुमार गये यूं कहके, चक्री नंदन मन शोच करंद ॥ ती०५॥ जरिये खाइ गंगा जलसे, तीरथ स्थिर चिरकाल रहंद । दंग रत्नसे खोदके गंगा, ले आये गंगाजल वृंद॥ती०६॥ गंगाजल आया खाश्में, नागनिकायके नवनगिरंद। क्रोध करी आकर सुर साथे, साठहजारको दाह करंद॥ती॥तीरथ रक्षा जाव प्रनावे, स्वर्ग बारवें जा उपजंद।आतम लक्ष्मी जन्मांतरमें, वखन हर्षे सबही लहंद ॥ ती ॥ काव्यफल पूर्ण लेनेके लिये फल पूजना जिन की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जिए, पण इंति दामी कर्म वामी शाश्वता पद लीजिए ॥ जव पाप ताप निवारणी प्रनु पूजना जगहितकारी, करु विमल आतम कारणे व्यवहार निश्चय मन धरी ॥७॥ मंत्र श्री परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेसाय पूर्वदिक् संस्थित ऋषन ? अजित २-दक्षिण दिक् सं. स्थित-संजव १ अजिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रन ४-पश्चिम दिक् संस्थित-सुपार्श्व ? चंप्रन २ सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत ७ उत्तरदिक् संस्थित-धर्म १ शांति २ कुंथु ३ अर ४ मल्लि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि ७ नेमि पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय फलानि यजामहे स्वाहा॥ आठमी नैवेद्य पूजा. दोहरा. नैवेद्य पूजा आग्मी, जात जात पकवान । थाल नरी जिन ागलें, उवियें चतुरसुजान. ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ मालकोश-त्रितालप्रजु वीरनाथ उपदेश सार, सुन जव्य जीव नव उतरे पार ॥प्रजु अंचली ॥ तीरथ अष्टापद अवदात, नूचर चरकर करत जात। होवे तदनव नवसे पार ॥ प्रज्जु वीरनाथ ॥ सुनकर गौतम गणधर धाये, निजलब्धि अष्टापद आये। वंदत जिनवर वीस चार ॥ प्रजु वीरनाथ ॥ चनअठ दस दोय जावे वंदन, निजगुण रंजन कर्म निकंदन । तीरथ अष्टापद जुहार ॥ प्रनु वीरनाथ०३॥ तापस पंदरसो तीन देखी, नूल गये सब अपनी शेखी। गौतम गुरु लिये दिलमें धार ॥ प्रन वीरनाथ०४॥ आतम लक्ष्मी गौतम स्वामी, तापस आतम लक्ष्मी पामी। हर्षे ववन प्रभु तीर्थकार ॥ प्रभु वीरनाथ० ५॥ . दोहरा. जरतेश्वर के समयमें, अष्टापद हुई नाम । अष्टापद गिरि खाश्का, चक्री सगरसे काम ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीरथ कायम जानिये, पंचम आरा अंत । देवाधिष्ठित मानिये, श्म नाषे नगवंत ॥२॥ ___(धनाश्री-पूजन करोरे आनंदी.) अष्टापद जयकार तीरथ जग अष्टापद जयकार ॥ अंचली ॥ पंदरसो तीन तापस कीना, पारणा चित्त उदार ॥ तीरथ जग अष्टा० १॥ दीराश्रव लब्धिसे गौतम, तृप्त किया अनगार॥ तीरथ जग अष्टा २॥ पांचसो एकने केवल पायो, पायस जिमतां सार॥तीरथ जग अष्टा०३॥ पांचसो एकने केवल लीनो, समवसरण निरधार ॥ तीरथ जग अष्टा ४ ॥ केवली पांचसो एक हुए हैं, वीर वचन अवधार॥तीरथ जग अष्टा०५॥ केवली प. रिसद जाय बिराजे, नमो तित्थस्स उच्चार ॥तीरथ जग अष्टा० ६॥ आतम लदमी प्रजुता साधी, वसन हर्ष अपार ॥ तीरथ जग अष्टा० ॥ कलश. ( मन मोह्या जंगलकी हरणीने. ) नविनंदो तीरथ जस वरणीने ॥ नविनंदो ॥अंचली॥ अष्टापद तीरथ जग उत्तम, जिनशा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन उदय करणीने ॥ नवि०१॥ चार आठ दस दोय जिनेश्वर, थापे नरत नूधरणीने॥ नविण्॥ तप गह गगनमें दिनमणि सरिसे, विजयानंद सूरिचरणीने ॥ ज०३॥ तस शिष्य लक्ष्मी विजय महाराजा, हर्ष विजय अनुसरणीने ॥जण्॥ तस लघु सेवक वन विजये, सुगम रीत अघहरणीने ॥नम्॥ अंक ऋषिनिधि छुवर्षे, फागन सुदिपूज तरणीने ॥ ज०६॥ नगर समाना रचना कीनी, शांतिनाथ जिन सरणीने ॥०॥ मुक्ता अदत पुष्प वधावो, तीरथ पार उतरणीने ॥ज॥ नूल चूक मिडामिक्कम, बातम लक्ष्मी नरणीने ॥जाए॥ काव्यसरस मोदक आदिसे जरी थाली जिनपुर धारिये । निर्वेदी गुण धारी मने निज नावना जनि वारिये ॥ नव पाप ताप निवारणी प्रजु पू. जना जग हित करी। करु विमल बातम कारणे व्यवहार निश्चय सन धरी ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ मंत्रजे ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेंप्राय पूर्वदिक् संस्थित-ऋषन १ अजित ५॥दक्षिण दिक् सं. स्थित-संनव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रन ४-पश्चिमदिक संस्थित-सुपार्श्व १ चंप्रन सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत -उत्तरदिक संस्थित-धर्म १ शांति ५ कुंथु ३ अर ४ मवि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि नेमि न पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥॥ P- विधिमें दी हुई आरती ६४ स्नात्री उतारे । बाकी शांतिधारा आदि जो कुछ करना होवे यथेच्छा करें। ति तपगडाचार्य १०७ श्रीमद्विजयानन्दसूरि। शिष्य महामुनि श्री १०७ श्रीलक्ष्मी विजर यजी शिष्य मुनिमहाराज श्री १०७ श्री हर्षविजयजी शिष्य मुनिवबनविजय है विरचिताष्टापद तीर्थ पूजा ॥ MORRESTERRIERRIASISATE WAISISATERIASISATER HIROFERRIERMARCRATERATERIATERNATERIATERATORIES Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री अष्टापद तीर्थ स्तवन ॥ श्री तीरथपद पूजो गुणीजन-ए देशी तीरथ अष्टापद जयवंतु, वर्ते छ जग माहे रे। -स्तवन तेहर्नु अष्टापदना, कल्पथो करीए उच्छांहेरे ।ती॥१॥ श्री आदीश्वर पावन करीने, पाम्या परमानंदरे । दश हजार मुनीश्वर साथे, कापी कर्मना कंदरे ॥ तो० ॥२॥ ऊत्कृष्टी अवगाहना वाला, साथे सिद्धि परीयारे । एकसो आठ बाहुबली आदि, एक समयमांतरीयारे।।ती०३॥ ते सांभलीने भरत नरेशर, अयोध्याथो आवेरे । पगे चाली अंतेऊर साथे, नमन करी गुण गावेरे ॥ती० ॥४॥ कोस त्रण ऊंचे रत्नहेमर्नु, देहरु तेह करावेरे । रत्ननी वर्ण मानोपेत प्रतिमा, चोवीश जोननी ठावेरे।।ती॥॥ तीर्थकर गणधर मुनिवरनां, स्तूप इंद्र बनावेरे । रत्नत्रयी सम ऊज्वल जोइ, भविजन शीर झुकावेरे ॥ती॥६॥ मोडसिंह मद फेटन कारण, अष्टापद सम कहीयेरे। भरतादिक क्रोडो मुनिवर जीहां, मुक्तिपद शुभ लहीयेरे।।ती॥७॥ साठ हजार सगर चक्रीना, पुत्रो यात्राए आव्यारे। चक्रवर्तीना रत्नादिकनी, ऋद्धि सिद्धि इहां लाव्यारे।।ती॥८॥ निज पूर्वजना कीर्ति थंभ सम, देवळथी हर्षायारे। एहवं देहरुं बंधाववाने, ते पण बहु ललचायारे । ती० ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण ते कोइ ऊत्तम स्थानक, मलीयु नही तव भावेरे। रक्षा करवा ए तीरथनी, ऊंडी खाइ खोदावेरे । ती० ॥१०॥ गंगा पाप पोतार्नु पखालवा, मानु आवे प्रसरतीरे । खाइमां दाखल थइ तीरथने, प्रदक्षिणा दीये फरतीरे ॥ती॥११॥ रत्न तिलक चोवीश जीन भाले, पूर्व भवमां चढावीरे। दमयंती निजभाले तिलकरुप, दिधु ते फल लावीरे ॥तीगार। तुटो तांत निज नसथी बांधो, रावणे विण बजावीरे।। अमोघ शक्ति इंद्रथी पामी, तीर्थकर यया भावीरे ॥ती० ॥१शा। चार आठ दस दोय जोन वांदे, गणधर गौतमस्वामीरे। दक्षिण दिशियी प्रदक्षिणा दिये, मुक्ति निर्णयना कामोरे।।ती० १४ पंदरसे तापस प्रतिबोधी, दीक्षा इहां पर आपीरे। वज्रस्वामीना जीव जंभकनी, शंका स्वामीएकापीरे॥तीगारद विजयानंद सूरीश्वर केरा, शिष्य सकल शणगाररे। लक्ष्मीविजय पंडित यया तस, हंस नमे अणगाररे ॥ती॥१६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ re alcohilo Mollelo やりたい Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com