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कहावे । संजव आदि सुपार्श्व आदि धर्मादि, ऋषनादि नमिये गमिये कर्म अनादि । पूजक पूजासे शीघ्र वरे शिवरानी ॥ अष्टा ॥४॥संग शाश्वती प्रतिमा चार जरत पधरावे, त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित दरसावे । नवनवति जाता
और नगिनी दो माता, मणिमय मूर्ति सब स्थापन कर गुणगाता । सेवा करती निज मूर्ति साथ जरानी ॥ अष्टा० ॥५॥ नारतपति पूजा अष्ट अव्यसे करते, आरति मंगल दीपक विधि सब अनुसरते । मणिरत्न सुवर्ण रजत पुष्पोंसे वधावे, *अदत मोती श्म संघ वधावे नावे । बातम लक्ष्मी हर्षे ववन धन्य मानी ॥ अष्टा ॥६॥
दोहरा. नारतपति चिंतन करे, तीरथ जग जयवंत । लोजी लोक अज्ञानसे, विषम काल विरतंत॥१॥
* इस स्थानपर मोती सुवर्ण रजत पुष्प रंगीन अक्षत पु. पादिसे श्रीसंघ प्रभुको वधावे और पूजाकी समाप्तिमें पुन: प्रभुको वधावे.
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