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वन्दे वीरमानन्दम् श्री अष्टापद तीर्थपूजा.
दोहरा. ऋषन शांति नेमि प्रजु, पारस जिनवर वीर । चरण कमल मस्तक धरुं, जय जग तारण धीर॥१॥ पूजन दोय प्रकारसे, जिनशासन विख्यात । प्रव्य नाव पूजन कही, महानिशीथे वात ॥२॥ जावस्तव मुनिवर करे, चारित्र जिनगुण गान । जस फल शिव संपद वरे,अदय अविचल थान॥३॥ जव्यस्तव जिन पूजना, त्रिविध पंच परकार । अंठ दसैसत कवी सकी, अष्टोत्तर जयकार ॥॥ अव्य नाव दोनों सही, श्रावक करणी जान । नाव नीर सींचन करें, समकित तरुवर मान ॥५॥ फल होवे अति नावसे, गुणि गुण करत वखान । पूजक नाव गुणो करूं; वर्णन सुखको निदान ॥६॥
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