Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 53
________________ पण ते कोइ ऊत्तम स्थानक, मलीयु नही तव भावेरे। रक्षा करवा ए तीरथनी, ऊंडी खाइ खोदावेरे । ती० ॥१०॥ गंगा पाप पोतार्नु पखालवा, मानु आवे प्रसरतीरे । खाइमां दाखल थइ तीरथने, प्रदक्षिणा दीये फरतीरे ॥ती॥११॥ रत्न तिलक चोवीश जीन भाले, पूर्व भवमां चढावीरे। दमयंती निजभाले तिलकरुप, दिधु ते फल लावीरे ॥तीगार। तुटो तांत निज नसथी बांधो, रावणे विण बजावीरे।। अमोघ शक्ति इंद्रथी पामी, तीर्थकर यया भावीरे ॥ती० ॥१शा। चार आठ दस दोय जोन वांदे, गणधर गौतमस्वामीरे। दक्षिण दिशियी प्रदक्षिणा दिये, मुक्ति निर्णयना कामोरे।।ती० १४ पंदरसे तापस प्रतिबोधी, दीक्षा इहां पर आपीरे। वज्रस्वामीना जीव जंभकनी, शंका स्वामीएकापीरे॥तीगारद विजयानंद सूरीश्वर केरा, शिष्य सकल शणगाररे। लक्ष्मीविजय पंडित यया तस, हंस नमे अणगाररे ॥ती॥१६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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