Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 52
________________ ॥ श्री अष्टापद तीर्थ स्तवन ॥ श्री तीरथपद पूजो गुणीजन-ए देशी तीरथ अष्टापद जयवंतु, वर्ते छ जग माहे रे। -स्तवन तेहर्नु अष्टापदना, कल्पथो करीए उच्छांहेरे ।ती॥१॥ श्री आदीश्वर पावन करीने, पाम्या परमानंदरे । दश हजार मुनीश्वर साथे, कापी कर्मना कंदरे ॥ तो० ॥२॥ ऊत्कृष्टी अवगाहना वाला, साथे सिद्धि परीयारे । एकसो आठ बाहुबली आदि, एक समयमांतरीयारे।।ती०३॥ ते सांभलीने भरत नरेशर, अयोध्याथो आवेरे । पगे चाली अंतेऊर साथे, नमन करी गुण गावेरे ॥ती० ॥४॥ कोस त्रण ऊंचे रत्नहेमर्नु, देहरु तेह करावेरे । रत्ननी वर्ण मानोपेत प्रतिमा, चोवीश जोननी ठावेरे।।ती॥॥ तीर्थकर गणधर मुनिवरनां, स्तूप इंद्र बनावेरे । रत्नत्रयी सम ऊज्वल जोइ, भविजन शीर झुकावेरे ॥ती॥६॥ मोडसिंह मद फेटन कारण, अष्टापद सम कहीयेरे। भरतादिक क्रोडो मुनिवर जीहां, मुक्तिपद शुभ लहीयेरे।।ती॥७॥ साठ हजार सगर चक्रीना, पुत्रो यात्राए आव्यारे। चक्रवर्तीना रत्नादिकनी, ऋद्धि सिद्धि इहां लाव्यारे।।ती॥८॥ निज पूर्वजना कीर्ति थंभ सम, देवळथी हर्षायारे। एहवं देहरुं बंधाववाने, ते पण बहु ललचायारे । ती० ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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