Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 45
________________ ४२ अर्चना ॥ अ॥ ६॥ मुनिसुव्रत नमि नेमि धीर, पार्श्व वीर नमे पूव तीर । ऋषन अजित जयकारा सुखकारा नविजन कीजे अर्चना ॥ ॥७॥ नमन करे श्म जिन चळवीश, आतम लक्ष्मी कारण ईश। वसन हर्ष अपारा सुखकारा, नविजन कीजे अर्चना ॥ अ॥७॥ दोहरा. हम कुल नरत नरेसरु, कीना एह विहार । धन मरु देवी मात को, धन्य ऋषन अवतार. ॥१॥ विषम कालको जानके, तीरथ रक्षा काज। योजन योजन अंतरे, पौमो आठ समाज. ॥२॥ अष्टापद गिरि धन्य है, धन्य जरत महाराज। धन्य हमारे नाग्य हैं, जनम सफल हम आज.॥३॥ (श्री राग-वीरजिनदर्शन नयनानंद.) तीरथ सेवा शिवतरु कंद-तीरथ सेवा-अंचली चक्री सगर सुत चितमें चिंतत, तीरथ रक्षा लाज अमंद । अष्टापद फिरती चढ तरफी, करिये खाइ अतिही महंद॥ ती० १॥ शत योजन खुदवा खाइ, शत्रुजय महातम यूं कहंद। धूर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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