Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 42
________________ (रेखता-जिनंद जस आज मैं गायो) शासन आदिनाथ जयकारी, असंख्या पाद सुखकारी । गये मुक्तिमें नरनारी, स्वर्ग बबीस अवतारी ॥१॥ अर्ध आरामें जिनवरका, प्रनु श्री आदि ईश्वरका । चला शासन जगदीशा, अर्धमें तीन और वीशा ॥२॥ तीरथ प्रजु थापना सोहे, चतुर्विध संघ मन मोहे । गणि गण अंग विस्तारा, अनादि तीर्थ आचारा ॥३॥ प्रनाकर वंश प्रनु सागर, असंख्या पाट गुण आगर । जरत चक्री ऋषन वारे, सगर चक्री अजित सारे ॥४॥ नूप जितशत्रु कुलनंदा, हुए सुत दोय रवि चंदा । अजित जिनराज सुखकारी, सगर नृप चक्री पद धारी ॥ ५॥ आतम सदमी प्रजु करता, अनादि नरमके हरता। हर्ष धरी सेविये नावे, वहन प्रजु तीर्थ गुण गावे ॥६॥ काव्यशुन ऽव्य अक्षत पूजना स्वस्तिक सार बनाश्ये, गति चार चूरण जावना नवि नावसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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