Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library
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(सारंग-केहरवा-हमें दम दे कर.)
कारण तीरथ जिन प्रगटाना ॥अंचली॥ जंबूझीप दक्षिण दरवाजा, मध्यनाग वैताढय कहाना ॥ का० ॥१॥ नगरी अयोध्या जरतकी कहिये, जिनवर गणधर यह फरमाना का॥२॥ निकट अयोध्या अष्टापद गिरि, बत्तीस कोश ऊंचा परमाना ॥ का०॥३॥ तिस नगरीमें नालि नरपति, मरुदेवा तस नार वखाना ॥ का० ॥४॥ तस कुदी शुक्तिमें मोती, अवतरिया जिन त्रिजुवन राना ॥ का० ॥५॥चौथ वदि आषाढकी जानो, च्यवन कल्याणक श्रीजिन गानाका॥६॥ चैत्र वदि अष्टमी प्रनु जाये, जन्म कल्याणक त्रिजुवन नाना ॥ का० ॥॥ आतमलदमी वहन हर्षे, विलसे विलुवन जन सुख माना ॥का॥॥
काव्यगंगा नदी पुन तीर्थ जलसे कनकमय कलशे भरी, निज शुरू नावे विमल थावे न्हवण जि.
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