Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ खामी जले बिराजोजी ॥ अंचली ॥ आरे तीन गर चौवीसी, सागर कोमाकोम । नवमें काल युगलका होवे, कहते गणधर जोम ॥ तुमे ॥१॥ आरे तीन ऋषन चौवीसी, इनमें जी यह रीत । ऋषन प्रजुके समय अगरां, कोमाकोमी मीत ॥ तुमे॥२॥पांच नरत अरु पांच श्रावत, दश क्षेत्रे समनाव । दस अप सागर कोमाकोमी, एक सरीसा नाव ॥ तुमे ॥ ३॥ इस कारण पलवति देत्रे, युगलिक नाव समान।जंबूझीप पन्नत्ति जीवा, निगमे गणधर वान ॥ तुमे ॥४॥लाख चौरासी पूरव बाकी,तीसरा थारा जान । नानि नृप कुलकरके कुलमें, प्रगट नये जगवान॥तुमे॥ ॥५॥ आतम लक्ष्मी प्रगट करनको, प्रगट नये महाराज । आतम लदमी दर्षे वसन, नमिये श्री जिनराज ॥ तुमे ॥६॥ दोहरा. अष्टापद गिरि है कहां, कितना है परमान । कैसे अष्टापद हुओ, सुनिये तास वखान ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54