Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library
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न करे को आशातना, कारण जरत नरेश । जाग विषम गिरि तोमके, कोनासाफ प्रदेश ॥२॥ ( सोहनी-कहरवा-सिद्धगिरि तीरथपर जानाजी)
अष्टापद तीरथ गानाजी, गानाजी सुख पानाजी ॥ अष्टापद० अंचली ॥ एक एक योजनके अंतर, आठ किये सोपानाजी ॥ अष्टा ॥१॥श्म अष्टापद तीरथ थापे, जरत जरतका रानाजी ॥ अष्टा० ॥२॥ अरिसा नवनमें केवल पायो, अंत हुये निरवानाजी ॥ अष्टा० ॥३॥ क्रमसे आठ पाट तक केवल, गणांग आठमा गनाजी ॥ अष्टा०॥४॥ पांचमी पूजा तीरथ थापन, अष्टापद गिरि मानाजी ॥ अष्टा०॥५॥ आतमलदमी चउबीस जिनवर, वजन हर्षअमानाजी॥अष्टा॥६॥
काव्यजिम दीपके परकाससे तम चौर नासे जानिये, तिम नाव दीपक नाणसे अज्ञान नास वखानिये । जव पाप ताप निवारणी प्रजु पूजना जग हितकरी, कर विमल आतम कारणे व्यवहार निश्चय मन
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