Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 37
________________ (देश-त्रिताल-लावनी) अवसर्पिणी आदिनाथ हुये निरवानी, अष्टापद तीरथ नाथ नमो नवि प्रानी ॥अंचली। किया अनशन प्रजुने जान जरत वहां आवे, चल अवधपुरीसे पाद अष्टापद जावे । पर्यकासन संस्थित प्रजुको नावे, परिकर्मा करके तीन सीसको नमावे । धन्य धन्य जगत प्रनु आप नरत मुखवानी ॥ अष्टा० ॥१॥ निर्वाण समय जरतेश्वर मूळ खावे, समजावे सुरपति सोग को दूर हटावे । स्वामी संस्कार निकट नूतलमें करावे, सुंदर मंदिर जरतेश्वर पाप खपावे। दियो सिंह निषद्या नाम अतिशय ज्ञानी ॥ अष्टा ॥२॥ निज निज जिन देह प्रमाण प्रतिमा मानो, चल पासे जिन चवीस विराजे जानो। पूर्वादि दिशि दोय चार आठ दश सोदे, ऋषनादि वीरजिनंद नवि मन मोहे । सम नाशा एक समान दृष्टि वैरानी ॥ अष्टा० ॥३॥ चत्तारी अउ दस दोय वंदना जावे, दक्षिण दिशि मूल प्रवेश हिसाब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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