Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 22
________________ ॥ नूमी शुद्ध बनाय केरे, लीजे ऽव्य सुधाररे ॥ नवि० ॥१॥ अष्टापद गिरि राजकारे, कीजे शुज आकाररे ॥ नवि० ॥२॥ दोय चार अठ दस प्रजुरे, पूव दक्षिण धाररे ॥ नवि० ॥३॥ पश्चिम उत्तर चल दिशारे, थापे जिनवर साररे ॥जविण॥॥ आपाठ नर चन दिशिरे, कलश लश्मनोहाररे ॥नविण॥॥से आगे अव्यसेरे, पूजनका अधिकाररे ॥ नविण ॥६॥ बातम लदमी हर्षसेरे, ववन तीरथ ताररे नवि०॥७॥ दोहरा. पूर्व तृतीयारक रहे, लाख चुरासी सेस। : बादल होवे सब जगा, समकाले दस देस॥१॥ जलधर जाति पांचके, वरसे सम मिट जाय। नूमी विषमाकारमें, ऊंची नीची थाय ॥२॥ अवसर पिणी उत्सर्पिणी, लोम विलोम कहाय। शाश्वत नावे जिन कहे, काल खनाव बनाय॥३॥ ___(तुमे तो भले बिराजोजी.) तुमे तो जले बिराजोजी अष्टापद तीरथक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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