Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 27
________________ २४ दोहरा. बंश गोत्र प्रनु ऋषनका, थापे सुरपतिराज । सागर कोमाकोममें, वरत रहा है आज ॥१॥ वनराजी हुश् मेघसे, हुयो काश समुदाय। सातवार जगे सही, श्ख रूपे थाय ॥२॥ (कवाली.) प्रनु श्री आदि जिनवरसे, वंश और गोत्र गया है। यही शास्त्रोंमें गणधरने, खुलाशा खूब गाया है ।प्र० अंचली॥ हरि उत्सादसे प्रजुके, वंश और गोत्र थापन को। लंबी सी श्तु लष्ठिको लिये प्रनु पास आया है ॥ प्र० १॥ पसारा हाथ जिनजीने, हरि खुश हो दिया श्छु। प्रजुका वंश इक्ष्वाकु, गोत्र काश्यप कहाया है ॥ २॥ प्रजु दो वीस ही इनमें, हुए दो वीस बाइसमें। हरिवंश गोत्र गौतममें, श्वाकु वंश बाया है। प्र० ३॥ समय जानी पिता माता, सुनंदा और मंगलाका । मिली संग देव देवीके, विवाहोत्सव रचाया है॥४॥ हुये सोपुत्रं दो पुत्री जरत बाहु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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