Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 34
________________ हु शिवपद मारग जारी, जिनशासन जग जयकारोरे ॥ नवि० ॥४॥ संघ चतुर्विध थापे प्रनुजी अवसर्पिणीमें आदि, जिनशासन रीति अनादि, तीर्थकर पद अनुसारीरे ॥ नविण ॥५॥ लाख प्रव विचरी प्रनु अंते मोद समयको जानी, अष्टापद आये ज्ञानी, दश सहस मुनि परिवारी रे ॥ नवि०॥६॥ आतम लक्ष्मीकारण सबने हर्षे अनशन कीना, मुक्तिववन पद लीना, दियो आवागमन निवारीरे ॥ नवि० ॥ ७ ॥ दोहरा. माघ वदि तेरस कही, मेरु तेरस नाम । कल्याणक पंचम हुर्ड, अष्टापद शुल गम ॥१॥ कल्याणक उत्सव करे, चनसठ सुरपति आय। प्रनु सेवाको मानते, निज आतमसुखदाय ॥२॥ (लेली लेली पुकारे वनमें ) प्रनु आदि जिनेश्वर स्वामी, हुए परमातम पदगामी ॥ प्र० अंचल॥ मिल चउसठ सूरपति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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