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__ २६ मल अनंत ७ उत्तरदिक् संस्थित-धर्म १ शांति ५ कुंथु ३ अर ४ मल्बि ५ मुनिसुव्रत ६ नमि नेमि पार्श्व ए वीर १० निष्कलंकाय चतुर्विंशति जिनाधिपाय चंदनं यजामहे स्वाहा॥
तीसरी पुष्प पूजा.
दोहरा. पूजा कुसुमकी तीसरी, करिये नवि गुणहेत । श्ह लव परजव सुख लहे, शिव संपद संकेत॥१ मालति मस्या मोगरा, केतकी जा फूल । यतनासे जिन पूजिये, होवे लाल अमूल ॥२॥ (लावनी-मराठी-ऋषभनिनंद विमलगिरिमंडन.)
आदि जिनेश्वर आदि नरेश्वर, जगजीवन हितकारीरे । प्रनु अति उपकारी, कियो जिन नीति मार्गको जारीरे ॥अंचली ॥ अवसर्पिणीमें प्रथम जिनंदका, जीतकल्प अवधारीरे। उत्सर्पिणीमें कुलकर मानो नोतिका अधिकारीरे ॥श्रा० १॥ थापन राज्य प्रजुका सुरपति, आवे
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