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समय विचारीरे। मंगप रचना सुंदर करके करे उत्सव मनोहारीरे ॥ आ॥ राज्याभिषेक कियो प्रजुजीको, सिंहासन पदधारीरे । बत्र चमर आदिसे शोना, करते प्रनु अलंकारीरे॥आण्३॥ आये युगलिक जलको लेकर, देखे प्रजु श्रृंगारीरे। दक्षिण अंगुष्ठे जल सींचे, उत्सव मनमें धारीरे॥ आ४॥ युगलिक नरका देख विनयगुण नगरी विनीता सारीरे । उ हुकम वैश्रमण वसावे, नाम अयोध्या वारीरे ॥ आप ५ ॥ जंबू दक्षिण दरवाजा और, वैताढ्य मध्य अनुसारीरे। - तम लक्ष्मी विनीता वसन, आदिजिनंद बलि. हारीरे ॥ आ॥ ६॥
दोहरा.
युगलिक रीति निवारके, शुजनीति व्यवहार। अवधपति वरताश्या, ये है अनादि चार. १ (गिरिवर दर्शन विरलापावे यह चाल-पीलू.) जय जिनवर जगनीति चलावे, नीति घ.
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