Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 31
________________ २८ लावे अनीति मिटावे ॥ अंग ॥ पांच शिल्प प्रनु मुख्य बतावे, वीस वीस तस नेद जनावे ॥जयर बहत्तर पुरुष कला सुखदार, चउसठ नारी कला सिखलावे ॥ जय०२॥ लेखन गणित क्रिया अ. ष्टादश, श्म नीति सब प्रनु दरसावे ॥जय० ३॥ राजनीति सेना चतुरंगी, राजा प्रजाका कृत्य सुनावे ॥ जय० ४॥ पृथक पृथक देश राज्य पुत्रको, नंदन नामसे देश बसावे ॥ जय०५ ॥ व्यासी लाख पूरव घरवासे, पूर्ण करी प्रजु दीदा पावे॥ जय ६॥ वरसी दान देश जगस्वामी, अनुकंपा मारग वरतावे ॥ जय० ॥ चैत्र वदि अष्टमी दिन दीदा, कल्याणक प्रनु ऋषन कहावे ॥जयण ॥ एक हजार वरस बद्मस्थे, एक वरस तप कीनो नावे ॥ जय० ए॥ अक्षय तृतीया श्रेयांस राजा, पारणा श्छु रससे करावे ॥ जय० १० ॥ क्षीरसे पारणा तेश्स जिनका, ऋषनका श्तु रससे सुहावे ॥जय०११॥ प्रथम प्रनुका दाता क्षत्रिय, ब्राह्मण तेइस जिन फरमावे ॥ जय० १५ ॥ सुर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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