Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 21
________________ विविध प्रकारसेरे, दरसायो मग सार॥प्रजु॥॥ तस वबन लघु सेवकेरे, मंदमति गुणहीन । तास प्रनावे जावसेरे, नक्ति रचना कीन ॥ प्रजुगा॥ नमन करी गुरु देवकोरे, सिमरी सारदमाय । दीपविजय कविराजकीरे, शुज रचना सुपसाय ॥प्रजु० ॥ ए ॥ हंस विजय मुनिराजकीरे, शुन आज्ञा अनुसार । नगर समानामें रचीरे, पूजा जय जयकार ॥ प्रजु० ॥ १०॥ आतम लक्ष्मी कारणीरे, पूजा जिनवरदेव। हर्षे वहन कीजियेरे जिनवर पदकी सेव ॥ प्रजु० ॥ ११ ॥ पहली जलपूजा. दोहरा. अष्टापद तोरथ तनी, पूजा अष्ट प्रकार। अष्टापद पूरे हरे, अष्टापद जयकार ॥१॥ अष्टापद उत्सव करे, जो नर धर शुज आस । तास विधि संदेपसे, सुनिये मन उदास ॥२॥ (वसंत-होइ आनंद बहाररे.) अष्टापद हितकाररे, नविसेवो तीरथको॥अंचली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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