Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 13
________________ १० जिनविबेभ्यो जलं समर्पयामि १ चंदनं समर्पयामि २ पुष्पं समर्पयामि ३ धूपं समर्पयामि ४ दीपं समर्पयामि ६ अक्षतं समर्पयामि ७ फलं समर्पयामि ८ नैवेद्यं समर्पयामि ८" पीछे चारों सजोडे आरती करें। आरती. जय जिनवरदेवा प्रभु जय जिनपति देवा । चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित सेवा-जयदेव जयदेव ॥ अंचली ॥ कोडाकाडी सागर, तीरथ जगतारु ॥प्र० ती० ॥ पौडी आठही दीपे, अष्टापद चारु ॥ जयदेव२ ॥१॥ दीपविजय कवि राजे, छाजे ठकुराई॥प्र० छा०॥ भरतेश्वर नृप शोभा, जिनकीरत गाई जयदेव२॥२॥ आतमलक्ष्मी हर्ष अनुपम, श्रीसंघ जयकारी॥श्री॥ वल्लभ जिनपद सेवा, भवसिंधु तारी॥जयदेव२॥३॥ __ इति उत्तरदिशापूजनस्थापनम् ॥ पीछे चारों दिशामें सब सजोडें एक साथ आरती उतारे। संपूर्ण आरती जलदी जलदो एक सरीखी सुरीली आवाजसें पढ़ें। आरती. जय जिन वरदेवा प्रभु जय जिनपति देवा । चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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