Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library
View full book text
________________
विंशतिं जिन प्रतिमाः, जरतः सात्म प्रतिमाः, ॥स ॥ए॥ स्वस्वाकृति मिति वर्णाक वर्णितान् वर्तमान जिन बिंबान्, जरतो वर्णित वानिह ॥सण ॥ स० ॥१०॥ स प्रतिमा नव-नवति बंधु स्तूपां स्तथाईत स्तूपम् , यत्रारचय चक्री ॥ स०॥११॥ जरतेन मोह सिंहं हन्तुमिवाष्टापदःकृताष्टपदः,शुशुनेऽष्ट योजनो यः॥स॥१॥ यस्मिन्ननेक कोट्यो महर्षयो जरत चक्रवर्त्याद्याः, सिEि साधित वन्तः ॥ स० ॥ १३॥ सगर सुताग्रे सवार्थ शिवगतान्जरत वंश राजर्षिन् , यत्र सुबुझिरकथयत् ॥ स० ॥ ॥१४॥ परिखा सागर मकरं सागराः सागराश्रया यत्र, परितो रदिति कृतये ॥ स० ॥१५॥ दालयितु मिव स्वैनो जैनो यो गंगयाश्रितः परितः, संतत मुखोल करैः॥ सण ॥१६॥ यत्र जिन तिलक दानादमयंत्यापे कृतानुरुप फलम् , नाल स्वनाव तिलकं ॥ स०॥ १७॥ यम कूपारे कोपादिपन्नलं वालिनांहिणाक्रम्य, आरावि रावणोऽरंस॥१॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54