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वाद में खमासमण देकर " अविधि आशातना हुई होवे तस्स मिच्छामिदुक्कड" कह कर सब सजोडें मंडपसे विदाय होजावें । इस रीतिसे सर्व विधिके समाप्त होजाने बाद ६४ स्नात्री एक एक तर्फ १६ के हिसावसे चारोंही तर्फ आमसामने आठ आठ कतार बंध प्रत्येक पूजामें पूजाकी सामग्री लेकर खडे हो जावें और पूजा पढानी प्रारंभ कर देवें ।
॥ इति ॥ । सोलह सजोडोंकी पूजाकी सामग्रीकी थालीमें और ६४ स्नात्रीकी पूजाकी प्रति थालीमें अपनी इच्छानुसार नकद चढाना योग्य है । कमसे कम प्रति थाली दो आनी तो अवश्य होनी चाहिये । पूजामें जो कुछ नकद चढाया जावे वो भंडारमें देव द्रव्यकी वृद्धिमें समझना । यदि किसीकी रचनापूर्वक अति उत्साहसे उत्सव करनेकी इच्छा न होवे
और यही पूजा पढानेकी इच्छा होवे तो वो यथाशक्ति लाभ लेकर अपने उत्साहको पूरा कर सकता है । उसके लिये अष्ट द्रव्यादि जो जो उपयोग की वस्तु होवें उनका होना तो जरुरी है । आठ द्रव्योंकी आठ थालीमें कमसे कम दो दो आनीतो नकद अवश्य रखनी चाहिये, अधिकके लिये अपनी इच्छा । बाकी जहां जहां पूजा आदिका जो जो रीवाज होवे वहां वहां उसका यथाशक्ति उपयोग रखना चाहिये ।
॥ इतिशुभम् ॥
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