Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library
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सेवा-जयदेव जयदेव ॥ अंचली ॥ जयकैलास निवासी, जगजन हितकारी-प्रभु जग० जयअष्टापद शिखरे, चउमुख जयकारी-जयदेव २॥१॥ दोय चार अठ दशकी, शोभा नहीं पारा, प्रभु शोभा० पीला सोल जिनेश्वर, भविजन सुखकारा जय०२॥२॥ दो नीला दो शामल, दोय उज्जल सोहे, प्रभु दोय० । दो राता चौवीसही, भविजन मन मोहे ॥जय०२॥३॥ लंछन देह बराबर, पद्मासनवंता-प्रभु पद्मा। नाशा भाग बराबर, चउदिशि सोहंता॥जयदेव२॥४॥ सासु वहु दोय भगिनी, बंधव निन्नानु, प्रभु बंधव० । सर्व परिकर प्रतिमा, आगमसे जानें ॥जयदेव२ ॥५॥ पुन मंदोदरी रावण, नाटक आचरता, प्रभु नाट। ततथै ततथै थैथै, जिनपद अनुसरता ॥जयदेव२ ॥६॥ कोडाकोडी सागर, तीरथ जगतारु, प्रभु तोरथ०। पौडी आठही दीपे, अष्टापद चारु ॥ जयदेव२॥७॥ दीपविजय कविराजे, छाजे ठकुराई ॥ प्रभु छाजे । भरतेश्वर नृप शोभा, जिनकीरत गाई ।।जयदेव २॥८॥ आतमलक्ष्मी हर्ष अनुपम,श्रीसंघ जयकारी,प्रभु श्री० वल्लभ जिनपद सेवा, भवसिंधु तारी ॥जयदेव२॥९॥
॥ इति ॥ [ पूजाकी.समाप्तिमें भी यही आरती ६४ स्नात्रिये सब मिलकर करें]
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