Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 11
________________ " ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये पश्चिमदिशासंस्थित-सुपार्श्व १ चंद्र प्रभ २ सुविधि ३ शीतल ४ श्रेयांस ५ वासुपूज्य ६ विमल ७ अनंत ८ जिन बिबेभ्यो जलं समर्पयामि १ चंदनं समर्पयामि २ पुष्पं समर्पयामि ३ धूपं समर्पयामि ४ दीपं समर्पयामि ५ अक्षतं समर्पयामि फलं समर्पयामि ७ नैवेद्यं समर्पयामि ८" पीछे चारों सजोडे आरती करें। आरती.. जय जिनवर देवा प्रभु जय जिनपति देवा । चउसठ सुरपति नर नरपति जस करते नित सेवा। जय देव जय देव । अंचली। सासु वहु दोय भगिनी, बंधव निन्नानुं । प्र० बंधव । सर्व परिकर प्रतिमा, आगम से जानु जयदेव २॥१॥ पुन मंदोदरी रावण नाटक आचरता। प्र० नाटक० ततथै ततथै थै थै जिनपद अनुसरता जयदेव २॥२॥ आरती उतार कर चारों सजोडे अपनी अपनी जगा बैठ जावें । इति पश्चिमदिशापूजनस्थापनम् ॥ उत्तर दिशा पूजन स्थापन । उत्तर दिशाके चारों सजोडों को वासक्षेप करके उत्तर दिशा का पूजन स्थापन करना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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