Book Title: Ashtapad Tirth Puja
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Hansvijayji Free Library

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Page 8
________________ शोभा नहीं पारा ॥ प्र० शो० ॥ पीला सोल जिनेश्वर, भविजन सुखकारा | जयदेव जयदेव ॥ २ ॥ आरती उतार कर चारों सजोड़े अपनेअपने स्थानपर बैठ जावें । इति पूर्वदिशापूजनस्थापनम् ॥ 1 दक्षिण दिशा पूजन स्थापन. दक्षिण दिशाके चारों सजोडों को वास क्षेप करके दक्षिण दिशाका पूजन स्थापन करना "ॐ ह्री श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चै - त्यालये दक्षिणदिशा संस्थित संभव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रभ ४ जिनबिंब अत्र अवतर अवतर संवौषट् स्वाहा । " [ आहान मुद्रा से आह्वान करना । "आओ पधारो" कहना ।] "ॐ हो श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये दक्षिण दिशा संस्थित-संभव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रभ ४ जिन बिंब अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा ( स्थापन मुद्रा से स्थापन करना ) पुन: - "" “ ॐ ही श्री कैलासाष्टापदशिखरे श्री सिंहनिषद्या चैत्यालये दक्षिणदिशा संस्थित-संभव १ अभिनंदन २ सुमति ३ पद्मप्रभ ४ जिन बिंब अत्र मम सन्निहितो भव भव" (सन्निधापनं कल्याण करो ). इस विधि से स्थापन करके चारों ही सजोडे अपनी अ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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