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वाणी का मालिकीपन गया, वहाँ संपूर्ण मुक्तदशा, होती है।
अहंकार के बिना वाणी निकलती ही नहीं, वाणी खुला अहंकार है। सिर्फ 'ज्ञानी पुरुष' की स्यादवाद वाणी के समय ही अहंकार नहीं होता, उसके सिवाय और कुछ भी बोलें, तो वह उनका अहंकार ही है, पर उसे 'डिस्चार्ज' अहंकार कहा जाता है।
वाणी का परिग्रह 'मैं कैसा बोला' वह और 'मैं बोल रहा हूँ', तब फिर कर्मबीज पड़ा। इस तरह संसार में वाणी भटकाती भी है और वीतराग वाणी संसारसागर पार भी करवाती है!
यह टेपरिकॉर्ड किस तरह 'टेप' होता है? अहंकार की प्रेरणा से पहले भीतर वाणी का कोडवर्ड होता है। कोर्डवर्ड में से शोर्टहेन्ड होता है, उसके बाद जब बजता है तब यह सुनाई देता है, वह 'फुल डिटेल' में निकलती है इसलिए।
मुख पर से भावाभाव की रेखा नहीं दिखे तब समझना कि वाणी का अपने भाव के अनुसार 'टेप' होता है। भाव में तो सिर्फ इसका अपमान करना है, इतना ही होता है, फिर संयोग हों, तब घंटों तक गालियाँ देती हुई वाणी अपने आप ही निकलती है। भाव होता है, उस समय ही 'कोडवर्ड' में छप जाता है और फिर 'शोर्टहेन्ड' में होकर बाहर निकलता है, तब फल फोर्म' में निकलता है ! आत्मा और परमाणु मिलते हैं, वहाँ-वहाँ आत्मा की उपस्थिति में भावाभाव के स्पंदन जगते हैं और उसमें अहंकार मिल जाए कि वे स्पंदन टाइप हो जाते हैं। जब गत भाव उदय में आएँ और उनके अनुसार ही तुरन्त ही टेप हो चुकी वाणी निकलती है। जो वाणी निकलती है, वह प्योर गत भावों का 'डिस्चार्ज' ही है।
किसीका किंचित् मात्र भी उल्टा-सीधा बोला गया तो वह टेप हो ही जाता है, परन्तु यह मनुष्य का मन, देह भी ऐसा है कि जिसमें टेप हो जाता है। सोते हुए व्यक्ति के पास उल्टा बोलें, तो भी वह ग्रहण कर लिया जाता है। यहाँ पर यह कुदरत की मशीनरी है! अँधेरे में या अकेले में ऐसा बोला गया तो वैसा ही जहर जैसा सुनने को मिलेगा। अपनी तरफ से थोड़े भी उल्टे स्पंदन खड़े
होते ही प्रतिक्रमण करके उन्हें मिटा देना।
हम बोले वह भी रिकॉर्ड है पर सामनेवाला बोला वह भी रिकॉर्ड ही है। इतना ही समझ लें तब फिर कभी भी किसीके बोल से चोट नहीं लगेगी।
'स्थूल संयोग, सूक्ष्म संयोग, वाणी के संयोग पर हैं और पराधीन हैं।' - दादा भगवान।
वाणी की मर्यादा कितनी? समझ केवलदर्शन की होने के बावजूद वाणी' एट ए टाइम' (एक समय में) एक से अधिक 'व्य पोइन्ट' क्लियर नहीं कर सकती। जब कि दर्शन 'एट ए टाइम' समग्र डिग्री पर घूम सकता है।
विश्व के तमाम रहस्यज्ञान, गूढ ज्ञान को जानने के लिए 'आत्मज्ञानी पुरुष' के पास जाने के अलावा और कोई उपाय ही नहीं। इसलिए तो शास्त्रकारों ने 'ज्ञानी पुरुष' को स्वयं देहधारी परमात्मा ही कहा है। वहाँ जाए तो खुद का आत्मा जानने को मिले!
- डॉ. नीरूबहन अमीन