Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 185
________________ (४०) वाणी का स्वरूप मोक्ष तो खुद के अंदर ही पड़ा हुआ है और मिलता नहीं है !!! और कितने ही जन्मों से भटक रहा है !!! ३१३ सामान्य व्यवहार में बोलने में हर्ज नहीं है, परन्तु देहधारी मात्र लिए कुछ भी टेढ़ा-मेढ़ा बोलोगे तो वह अंदर रिकॉर्ड हो जाएगा! इस संसार के लोगों को रिकॉर्ड करना हो तो देर ही कितनी? एक जरा-सा छेड़ो तो प्रतिपक्षी भाव टेप होते ही रहेंगे। 'तुझमें कमज़ोरियाँ ऐसी हैं कि छेड़ने से पहले ही तू बोलने लगेगा।' प्रश्नकर्ता: खराब बोलना तो नहीं है, परन्तु खराब भाव भी नहीं आना चाहिए न ? दादाश्री : भाव नहीं आना चाहिए, वह बात सही है। भाव में आए वह बोले बगैर रहा नहीं जाता। इसलिए बोलना यदि बंद हो जाए न तो भाव बंद हो जाएँगे। ये भाव तो बोली के पीछे रहे हुए प्रतिघोष हैं। प्रतिपक्षी भाव तो उत्पन्न हुए बिना रहते ही नहीं न! हमें प्रतिपक्षी भाव नहीं होते हैं, वहाँ तक आपको भी पहुँचना है। उतनी अपनी कमज़ोरी जानी ही चाहिए कि प्रतिपक्षी भाव उत्पन्न नहीं हों। और शायद कभी हो गए हों तो आपके पास प्रतिक्रमण का हथियार है, उससे मिटा देना। पानी कारखाने में गया हो, लेकिन बर्फ नहीं बने, तब तक हर्ज नहीं है, बर्फ बन जाने के बाद हाथ में नहीं रहता। हमसे पत्र में किसीके लिए कुछ गलत लिखा गया हो, परन्तु वह पत्र डाला नहीं हो, तब तक वापिस नीचे लिखा जा सकता है कि ऊपर आपके लिए दो शब्द खराब लिख दिए गए हैं, उस घड़ी मेरे दिमाग़ में कुछ पागलपन आ गया होगा, इसलिए लिख लिया गया, इसलिए कृपया मुझे माफ़ कीजिए। ऐसा लिखो तो सब माफ़ हो जाता है। परन्तु उस घड़ी इनकी इज्जत जाती है, इसलिए नहीं लिखते। ये आबरूदार के चिथड़े सारे ! कितने ही कपड़े रखें, तब जाकर इज्जत रहती है। वह भी फिर फट गया हो तो जोड़ लगाना पड़ता है। कपड़ा मैला हुआ हो तो कलह कर देते हैं, 'मेरी सफेद टोपी धोई ही नहीं तुमने, नावछाप पहनता था न, वह ? आप्तवाणी-४ इस्त्री क्यों नहीं की?' अब इस्त्री के लिए कलह करता है। किसलिए आबरू रखता है यह? नंगा फिरे, फिर भी लोग पूजा करें, वैसी आबरू ढूंढ निकाल । ३१४ भीतर अनंत शक्तियाँ हैं। जिस दिशा में ले जानी हो, वहाँ ले जा सकते हो, वैसे हो। रास्ता जानने की ज़रूरत है। जितनी प्रेममय डीलिंग होगी, बस उतनी ही वाणी इस टेपरिकॉर्ड में पुसाए वैसी है, उसका यश अच्छा मिलेगा। शास्त्रों ने कहा है कि खराब मत बोलना, खराब मत सोचना। हम सोचते हैं कि ऐसा क्यों गाते रहते होंगे ये? ये मशीनरी ही ऐसी है कि सब टेप हो जाता है। फिर जब पुरावा (प्रमाण) आ मिलें तब फज़ीता होता है। प्रश्नकर्ता: पुरावे संयोग के रूप में बाहर आते हैं? दादाश्री : हाँ। संयोग इकट्ठे हो जाएँ तब बाहर आता है और कुछ पुरावे हमें अंदर ही अंदर परेशान करते हैं। वह भी अंदर संयोग इकट्ठे हो जाएँ तब । वे अंदर के संयोग कहलाते हैं। वे 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' हैं। घर में पत्नी को डाँटें तो वह समझता है कि 'किसीने सुना ही नहीं न, यह तो यों ही है न?' छोटे बच्चे हों तो उनकी उपस्थिति में पति पत्नी चाहे जैसा बोलते हैं। वे समझते हैं कि यह छोटा बच्चा क्या समझनेवाला है? अरे, अंदर टेप हो रहा है, उसका क्या? वह बड़ा होगा तब वह रिकॉर्ड हो चुका बाहर निकलेगा ! प्रश्नकर्ता: जिसे टेप में रिकॉर्ड नहीं करना हो उसके लिए क्या रास्ता है? दादाश्री : कोई भी स्पंदन नहीं करना चाहिए। सबकुछ देखते ही रहना चाहिए, परन्तु ऐसा होता नहीं है न? यह भी मशीन है और फिर पराधीन है। इसलिए उसे हम दूसरा रास्ता बताते हैं कि यदि टेप हो जाए तो तुरन्त मिटा देना, तो चलेगा। यह प्रतिक्रमण उसे मिटाने का साधन है।

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