Book Title: Aptavani 04
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 186
________________ (४०) वाणी का स्वरूप ३१५ उससे एकाध जन्म में परिवर्तित होकर ऐसा सब बोलना बंद हो जाएगा। प्रश्नकर्ता: शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठ जाने के बाद निरंतर प्रतिक्रमण चलते ही रहते हैं। दादाश्री : इसलिए आपकी जिम्मेदारी नहीं रहती । हमें तो कविराज के पद एक्ज़ेक्ट उसी आवाज़ में, उसी राग में, दो-दो, तीन-तीन घंटों तक निरंतर सुनाई ही देते रहते हैं। वह क्या होगा ? वह तो मशीन है। यह भी बहुत बड़ा साइन्स है । वह टेपरिकॉर्ड मनुष्य ने बनाया हुआ है और यह तो अनौपचारिक है। मनुष्य से बन ही नहीं सके, वैसी यह मशीन है। इसमें इलेक्ट्रिक करन्ट नहीं चाहिए, बेटरी नहीं चाहिए। रात-दिन, बरसात हो या गरमी पड़े, बर्फ पड़े फिर भी यह मशीन चलती ही रहती है। पंद्रह वर्ष पहले हमने किसी व्यक्ति को देखा हो, उसे आज देखें, फिर भी वह हमें फिर से याद आ जाता है कि इसे देखा था। ऐसी यह मशीन है। प्रत्येक परमाणु में टेप करने की शक्ति है। आँखों को फिल्म खींचने की शक्ति है, अंदर अपार शक्तियाँ हैं। इस एक अंदर की मशीन पर से दूसरी सब अपार मशीनें बनती हैं। यानी यह मशीन बहुत ज़बरदस्त पावरफुल है। जब तक जगत् व्यवहार की आपको ज़रूरत है, तब तक मनोहर लगे वैसा बोलो। जिसके वाणी, वर्तन और विनय मनोहर हो गए, वह प्रेमात्मा हो गया। परन्तु वह आए किस तरह? वाणी ऐसी बोलते हैं कि सामनेवाला चाय दे रहा हो, वह भी नहीं दे । कोई अनजाने गाँव में हम गए हों और वहाँ पर बोलते रहें कि, 'ये सारे लोग ऐसे ही गए बीते हैं।' ऐसा गाते रहें तो शाम को खाना मिलेगा क्या? इसके बदले तो 'आप बहुत अच्छे लोग हो।' ऐसा कहें तो सामने से लोग पूछेंगे कि 'आपने कुछ खाया या नहीं?' आप्तवाणी-४ इस काल में तो मज़ाक भी नहीं कर सकते। एक शब्द भी नहीं बोल सकते। मोटे हों तो उन्हें मोटे नहीं कह सकते। लम्बे हों तो उन्हें लम्बे नहीं कह सकते। ये लोग तो प्लास्टिक जैसे हो चुके हैं। अपने लोग तो चाहे जिसकी निंदा करते हैं। सिर्फ मनुष्य का तो ठीक है परन्तु इन फ्रूट्स की भी निंदा करते हैं। यह बादीवाला है, कहेंगे। इससे गर्मी हो जाएगी। अरे, तुझे बादी होगी, दूसरे को नहीं। लेकिन इनकी भाषा ही टेढ़ी है, वहाँ क्या? बोल से ही जगत् खड़ा हुआ है और बोल से ही जगत् बंद हो ३१६ जाएगा। इन सुधरे हुए घरों में- सभ्य लोगों के यहाँ असभ्य वर्तन के दुःख नहीं होते, असभ्य वाणी के दुःख होते हैं। इन लोगों के घर पर कोई पत्थर मारता होगा? नहीं, वचनबाण मारते हैं। अब यह पत्थर मारे वह अच्छा या वाक्बाण मारे वह अच्छा? प्रश्नकर्ता: पत्थर अच्छा। दादाश्री : अपने यहाँ के लोग पत्थर पसंद करते हैं और वाणी चोट नहीं पहुँचाती फिर भी उसे पसंद नहीं करते। जो लगे और खून निकले, जलन हो, डॉक्टर को बताकर उसका इलाज किया जा सकता है। वह घाव भर जाएगा, परन्तु यह शब्द का घाव लगे तो नहीं भरता। पंद्रह-पंद्रह वर्ष हो जाए फिर भी वह घाव जलता ही रहता है! उसका क्या कारण है? यह खुद बोल रहा है ऐसा मान लिया है इसलिए हम गारन्टी देते हैं कि जीव- मात्र की वाणी रिकॉर्ड है। यह हमारी भी रिकॉर्ड है न! यह रिकॉर्ड बज रहा हो कि 'चंदूलाल अच्छे व्यक्ति नहीं है, अच्छे व्यक्ति नहीं है। ' तो आपको गुस्सा आएगा? प्रश्नकर्ता: वह तो मशीन है न? दादाश्री : तो ये मनुष्य बोलते हैं वह टेपरिकॉर्ड ही बोल रहा है। आपके शब्द को 'रिकॉर्ड' मानोगे और सामनेवाले के शब्द को भी 'रिकॉर्ड'

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